भारतीय क्रिकेट में सौरव गांगुली का नाम सुनते ही सबसे पहले उनके अद्वितीय कप्तानी के अंदाज और बेजोड़ खेल की यादें आती हैं। 'दादा' के नाम से मशहूर सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को एक नया मोड़ दिया। उनके नेतृत्व में टीम ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि भारतीय क्रिकेट को एक नई पहचान भी मिली।
1996 में लॉर्ड्स में अपने टेस्ट डेब्यू पर शतक जड़ने वाले गांगुली ने अपने खेल से सभी को हैरान कर दिया। उस समय भारतीय क्रिकेट में कई उतार-चढ़ाव चल रहे थे, और गांगुली का यह शतक टीम के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। चार साल बाद, वर्ष 2000 में जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग कांड से उबरने की कोशिश कर रहा था, तब गांगुली ने कप्तानी संभाली।
कप्तान के रूप में गांगुली ने टीम में नए और युवा खिलाड़ियों को मौका दिया। युवराज सिंह, हरभजन सिंह, जहीर खान और वीरेंद्र सहवाग जैसे युवा खिलाड़ी उनकी कप्तानी के दौरान उभरे और भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। यह उनका दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास ही था जिसने टीम को संकट के दौर से निकालकर सफलता की राह पर लाया।
सौरव गांगुली की कप्तानी के दौरान भारतीय क्रिकेट को कई महान जीतें मिलीं। 2000 में आईसीसी नॉकआउट ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचना, 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2-1 से बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीतना, 2002 में नार्वेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में इंग्लैंड को हराना, ये सभी उनके नेतृत्व की बेहतरीन मिसाल हैं। खासकर लॉर्ड्स के बालकनी पर शर्ट उतारकर जश्न मनाने का वो ऐतिहासिक लम्हा, जब भारत ने इंग्लैंड को हराकर वापसी की थी, आज भी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में जिंदा है।
चुनौतियों के बीच भारतीय टीम को 2003 के विश्व कप के फाइनल में ले जाना गांगुली की बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि, फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हारने के बावजूद, इस टूर्नामेंट ने भारतीय क्रिकेटरों के मनोबल को बढ़ाने का काम किया। गांगुली की कप्तानी में टीम ने जो संघर्ष और खेल की भावना दिखाई, वह वास्तव में काबिले तारीफ थी।
2005-06 के दौरान गांगुली को उनके करियर में एक बड़ा झटका लगा जब तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के साथ उनके संबंध खराब हो गए और उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया। यह समय गांगुली के लिए काफी कठिन था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी मेहनत और दृढ़ता से वे टीम में वापसी करने में सफल रहे और 2008 में अपने आखिरी टेस्ट तक भारतीय क्रिकेट का अहम् हिस्सा बने रहे।
2008 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी गांगुली का क्रिकेट से जुड़ाव खत्म नहीं हुआ। वे 2012 तक इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में खेलने का सिलसिला जारी रखे। अपने लंबे करियर में उन्होंने 113 टेस्ट और 311 एकदिवसीय मैच खेले, जिसमें उन्होंने कुल 18,575 रन बनाए।
खेल के मैदान के बाद, गांगुली ने प्रशासनिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाया। पहले उन्होंने बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन (सीएबी) के अध्यक्ष का पद संभाला और फिर बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (बीसीसीआई) के अध्यक्ष बने। उनकी प्रशासनिक क्षमता और नेतृत्व कौशल ने भारतीय क्रिकेट को न केवल खेल बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी मजबूत किया।
आज, सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट के एक महानायक के रूप में माने जाते हैं। उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि संघर्ष और आत्मविश्वास का नया अध्याय लिखा। उनके जन्मदिन पर उन्हें याद करना और उनके योगदान को सम्मान देना हमारे लिए गर्व की बात है।
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