जब जलज साक्सैना, 13 मार्च 1987 को जन्मे 37‑वर्षीया ऑल‑राउंडर, ने 6 नवंबर 2024 को 6000 रन और 400 विकेट का अद्वितीय डबल हासिल किया, तो कई फैंस की आँखें जमीं। यह माइलस्टोन सेंट जेज़हव्स कॉलेज ग्राउंड, थुंबा, त्रिवेंद्रम पर केरल बनाम उत्तर प्रदेश के रांजी ट्रॉफी एलाइट ग्रुप C चौथे दौर के मैच में बना। इस जीत में केरल क्रिकेट टीम ने टॉस जीतकर पहले बॉलिंग का विकल्प चुना, और साक्सैना ने अपने शानदार ऑफ‑स्पिन से विंड को बहरा कर दिया।
रांजी ट्रॉफी, जिसका नाम कुमार श्री रंजीतसिंहजी के नाम पर पड़ा, 1934‑35 में भारत में पहला प्रथम‑क्लास डोमेस्टिक टूर्नामेंट बना। शुरुआती 15 टीमों से शुरू होकर आज 38 राज्य‑संघ और केन्द्र शासित प्रदेशों की टीमें इसमें भाग ले रही हैं। प्रत्येक सीज़न दिसंबर से मार्च तक चलता है, और विजेता को वँखेड़े स्टेडियम, मुंबई में फाइनल खेलना होता है।
साक्सैना जैसे खिलाड़ी इस दीर्घ इतिहास में चमकते हैं, क्योंकि उनका करियर 2005‑06 से अब तक 19 साल से अधिक का है। उन्होंने पहले मध्य प्रदेश के लिए 11 सीज़न खेले, जहाँ 4,041 रन और 159 विकेट उनका नाम रख चुके थे। 2016‑17 में केरल की ओर बदलाव ने उनके वर्ल्ड‑क्लास योगदान को और तेज कर दिया।
उत्तर प्रदेश के खिलाफ पहलेinnings में साक्सैना ने पाँच विकेट लिये, जिससे उनका व्यक्तिगत पाँच‑विकेट क्लब अब 29 बार बढ़ गया। पहले वह आर्यन जॉयाल (57 में 23) को गिरा, फिर माधव कउशिक (58 में 13) को साफ‑सुथरा आउट किया। चौथे विकेट के बाद, साक्सैना ने नितिश राणा को एक तेज़ ऑफ‑स्पिन से लुभाया, जिससे विकेटकीपर मोहीद् अज़हरुद्दीन ने स्टम्पिंग करके रजत को जमा दिया। यही वह क्षण था जब 400‑विकेट‑माइलस्टोन हासिल हुआ।
केरल की कप्तान सचिन बेबी ने टॉस जीतने के बाद बॉलिंग का चयन किया, जो टर्निंग पिच पर साक्सैना को पूरी आज़ादी देता था। उनका पाँच‑विकेट प्रदर्शन न केवल व्यक्तिगत रिकॉर्ड था, बल्कि टीम के लिए भी बड़ी सफलता की चाबी बना।
साक्सैना अब तक के रांजी ट्रॉफी इतिहास में केवल 13वें खिलाड़ी हैं जिन्होंने 400 विकेट लिये हैं। लेकिन वे एकमात्र हैं जिनके पास 6000 रन का क्रमिक बैटिंग रिकॉर्ड भी है। इस द्वैध‑समर्थन से उन्हें "ऑल‑राउंडर की नई परिभाषा" कहा जा रहा है।
डोमेस्टिक क्रिकेट में उनका आकड़ा इतना प्रभावशाली क्यों है, इसका एक कारण उनका लगातार फिटनेस और परिपक्वता है। 2023‑24 में उन्होंने 9,000 रन और 600 विकेट का निज़ी‑डोमेस्टिक समूह में चौथा स्थान हासिल किया, जो पहले केवल विंनो मंकड, मदन लाल और परवेज़ रासूल ने किया था। यह रिकॉर्ड बताता है कि वह सिर्फ एक अच्छा बॉलर नहीं, बल्कि सच‑मुच एक भरोसेमंद बॅट्समैन भी हैं।
रांजी ट्रॉफी सीज़न ओपनर के दौरान, पूर्व बीसीसीआई नेशनल सेलेक्टर सलिल शंकर अंकोला और चेतन शर्मा ने लाइव टॉक‑शो में कहा, "आश्चर्यजनक है कि हम दोनों सेलेक्टर थे, और आप (साक्सैना) हमारे चेयरमैन नहीं बने।" उनका एक‑दूसरे का जवाब "हम पर भी फिंगर उठे होंगे" ने सोशल मीडिया में धूम मचा दी। ट्विटर पर #SaxenaMissing की ट्रेंड लग गई, जहाँ फैंस ने बीसीसीआई को उनकी झाकी को फिर से देखे जाने की अपील की।
बेहद दिलचस्प बात ये भी थी कि साक्सैना ने इस इंटर्व्यू में कहा, "मैं भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाया, पर मेरा दिल प्रथम‑क्लास क्रिकेट में ही है।" यह स्वीकारोक्ति कई युवा खिलाड़ियों को सिखा रही है कि राष्ट्रीय चयन ही सफलता की एकमात्र माप नहीं है।
साक्सैना ने इस सीज़न के लिए अपने क्लब को महाराष्ट्र क्रिकेट टीम में बदल दिया है। उनका कहना है, "बुजुर्ग माता‑पिता के करीब होने के लिए यह कदम सही लगा, पर केरल के साथ फिर से जुड़ने की इच्छा है।" उनका यह कदम भारत के घरेलू क्रिकेट में एक नई गतिशीलता लाता है, जहां अनुभवी खिलाड़ियों को टीम‑बिल्डिंग और मेंटरशिप के लिए भी जगह मिलती है।
भविष्य में, साक्सैना का लक्ष्य केवल व्यक्तिगत आंकड़े नहीं, बल्कि टीम को अंतिम फाइनल तक पहुँचाना है। विशेषकर जब फाइनल वँखेड़े स्टेडियम, मुंबई में आयोजित होगा, तो उनकी मौजूदगी को सभी देखेंगे। चाहे फिर से भारत के लिए खेलने का मौका मिले या नहीं, उनका नाम अब रांजी ट्रॉफी की किताबों में हमेशा के लिए लिखा जाएगा।
रांजी ट्रॉफी के 90‑वर्षीय इतिहास में यह पहला डबल है, जिससे यह दर्शाता है कि वह केवल गेंदबाज़ नहीं बल्कि लगातार बैटिंग में भी विश्वसनीय हैं। यह संतुलन टीम को दो‑पहिए वाले खिलाड़ी के रूप में मूल्य देता है, जिससे चयनक और रणनीतिक योजना दोनों को फायदा होता है।
नहीं। 2020‑2024 के बीच सलिल शंकर अंकोला और चेतन शर्मा के सेलेक्टर बनने के दौरान भी उनका नाम नहीं आया। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि चयन प्रक्रिया में क्षेत्रीय संतुलन और युवा फोकस ने उन्हें पीछे रखा।
महाराष्ट्र के पास मजबूत बॉलिंग लाइन‑अप है, पर साक्सैना की अनुभव से वह युवा बॉलरों को मेंटर कर सकते हैं। उनके डबल रिकॉर्ड से महाराष्ट्र को प्ले‑ऑफ़ में जगह बनाने की संभावना बढ़ती है, और फाइनल तक पहुँचने की भी उम्मीद है।
टूर्नामेंट का विस्तार और नए फॉर्मेट्स (जैसे टी‑20) के साथ, पहली‑क्लास क्रिकेट पर फिर से ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे रिकॉर्ड जैसे साक्सैना का, युवा पीढ़ी को दीर्घकालिक करियर बनाने का संदेश देते हैं।
साक्सैना ने बताया कि उम्रदराज़ माता‑पिता के करीब रहने के लिए यह कदम उठाया। उन्होंने कहा, "केरल के साथ भविष्य में फिर से जुड़ने की इच्छा है," इसलिए यह ट्रांसफर व्यक्तिगत कारणों पर आधारित है, न कि किसी विवाद पर।
Prince Naeem
जलज साक्सैना का 6000‑रन‑400‑विकेट डबल सिर्फ आँकड़े नहीं है; यह भारतीय घरेलू क्रिकेट की स्थायित्व की कहानी है।
पहले दौर में वह अक्सर मध्य‑क्रम में बैटिंग करते थे, लेकिन समय के साथ उनकी भूमिका बदलती गई।
उनका ऑफ‑स्पिन कूदते पिच पर भी घुमावदार रहता है, जिससे बॉलर‑बैटर संतुलन बनता है।
ऐसे ऑल‑राउंडर टीम के लिए दो‑पहिया वाहन की तरह होते हैं, जो अस्थिर परिस्थितियों में भी गति बनाए रखते हैं।
साक्सैना ने अपने शुरुआती करियर में मध्य प्रदेश के लिए 4,041 रन और 159 विकेट लिए, जो उल्लेखनीय है।
केरल में उनका ट्रांसफ़र सिर्फ निजी कारण नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम भी था।
केरल की सपीड पिच पर उनकी स्पिनिंग क्वालिटी को और निखार मिली।
उनका फिटनेस रूटीन युवा बॉलर्स के लिए एक मॉडल है, क्योंकि वह 37 वर्ष की आयु में भी तेज़ी से दौड़ते हैं।
वर्तमान में रांजी ट्रॉफी में उनका औसत 42.5 है, जो अधिकांश टॉप ऑल‑राउंडर से बेहतर है।
जलज का अनुभव युवा खिलाड़ियों को मेंटरशिप देने में उपयोगी होगा।
भविष्य में यदि वह राष्ट्रीय टीम में नहीं लौट पाए, तो भी उनका प्रभाव घरेलू स्तर पर जारी रहेगा।
भारी पिच पर उनकी पाँच‑विकेट परफ़ॉर्मेंस ने दिखाया कि वह दबाव में भी चमकते हैं।
उनकी बैटिंग की स्थिरता अक्सर मैच की दिशा बदल देती है।
साक्सैना की कहानी यह सिखाती है कि चयन प्रक्रिया में केवल उम्र या ट्रेंड नहीं, बल्कि निरंतरता को भी महत्व देना चाहिए।
अंत में, उनका रिकॉर्ड युवा cricketers को दिखाता है कि कठिन परिश्रम और धैर्य से इतिहास रचा जा सकता है।