आपने खबरों में हिजबुल्लाह का नाम कई बार सुना होगा, खासकर जब इज़राइल‑लेबनान संघर्ष उठ खड़ा होता है। लेकिन हिजबुल्लाह सिर्फ एक मिलिशिया नहीं, यह लेबनान की राजनीति, समाज और विदेश नीति में गहराई से जुड़ा हुआ समूह है। इस लेख में हम आसान भाषा में बताएँगे कि हिजबुल्लाह असल में क्या है, कब बना, और आज के ज़माने में इसका क्या असर है।
हिजबुल्लाह, जिसका मतलब है "ईश्वर की सेना", 1982 में इज़राइल के लेबनान आक्रमण के बाद उभरा। शुरुआती सालों में इसने सुन्नी‑शिया विभाजन को पाटते हुए शिया समुदाय को इज़राइल से बचाने का काम किया। मुख्य लक्ष्य था लेबनान में इज़राइल की मौजूदगी समाप्त करना और शिया मुसलमानों की राजनीतिक आवाज़ बनना। समय के साथ इसने इरान से वित्तीय और सैन्य मदद ली, जिससे उसकी सेना तेज़ी से मजबूत हुई।
हिजबुल्लाह सिर्फ लड़ाई लड़ने वाला नहीं, बल्कि लेबनान की सरकार में भी सक्रिय है। 1992 में इसे आधिकारिक रूप से एक राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता मिली और वह संसद में सीटें जीतता आया है। चुनावी जीत के अलावा, हिजबुल्लाह ने कई स्कूल, अस्पताल और सामाजिक संस्थाएँ खोलीं। गरीब शिया परिवारों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएँ, वोलंटरी मदद और छात्रवृत्ति मिलती है, इसलिए कई लोग इसे केवल मिलिशिया से अधिक मानते हैं।
इन सामाजिक सेवाओं के कारण हिजबुल्लाह का बहुत बड़ा फॉलोइंग बना है, खासकर उन इलाकों में जहाँ सरकार की सेवाएं कमजोर हैं। यही कारण है कि जब भी इज़राइल या पश्चिमी देशों की नीतियों की बात आती है, हिजबुल्लाह की प्रतिक्रिया जल्दी और तीव्र मिलती है।
आज हिजबुल्लाह के पास विकसित रॉकेट, मिसाइल और ड्रोन्स हैं। उसने कई बार इज़राइल के सैन्य ठिकानों पर आग मचा दी है, जिसके चलते दोनों देशों के बीच कई बड़े युद्ध हुए। 2006 का इज़राइल‑लेबनान युद्ध हिजबुल्लाह की शक्ति दिखाने वाला एक बड़ा उदाहरण था, जहाँ उसने इज़राइल की हवा को काफी नुकसान पहुंचाया। इस संघर्ष ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिजबुल्लाह को "टेरर समूह" की सूची में डाल दिया, जबकि कई अरब देशों ने इसे एक प्रतिरोध संगठन माना।
हाल ही में हिजबुल्लाह ने सीरिया के संघर्ष में भी भाग लिया, जिससे इरान के साथ उसका गठबंधन और मजबूत हुआ। इरान के समर्थन से उसकी रॉकेट टेक्नोलॉजी और फंडिंग में इजाफा हुआ है, जिससे वह मध्य‑पूर्व की सुरक्षा तंत्र में एक बड़ा खिलाड़ी बन गया।
हिजबुल्लाह के सामने कई सवाल खड़े हैं। एक ओर, वह लेबनान में सामाजिक एवं राजनीतिक समर्थन बनाए रखना चाहता है, तो दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और आर्थिक कठिनाइयाँ उसे घेर रही हैं। अगर लेबनान की आर्थिक स्थिति बिगड़ती रही, तो हिजबुल्लाह को अतिरिक्त संसाधन ढूँढने के लिये और अधिक बाहरी सहयोग की जरूरत पड़ सकती है।
साथ ही, इज़राइल के साथ निरंतर टकराव दोनों पक्षों को भारी नुकसान पहुंचाता है। कोई भी बड़ा संघर्ष क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर सकता है, जिससे रोज़मर्रा की जिंदगी में भी परेशानियां बढ़ेंगी। इस कारण, कई विश्लेषक कहते हैं कि हिजबुल्लाह को राजनैतिक समाधान और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, ना कि केवल सैन्य ताकत दिखाने पर।
अंत में, हिजबुल्लाह सिर्फ एक मिलिशिया नहीं, बल्कि लेबनान की राजनीति, समाज और सुरक्षा में एक जटिल भूमिका निभाता है। इसे समझना इस बात का संकेत दे सकता है कि मध्य‑पूर्व के भविष्य में क्या बदलाव आ सकते हैं और किस दिशा में संघर्ष या शांति के रास्ते खुल सकते हैं।
हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत बैरूत में एक हवाई हमले में हो गई है, जिसे इज़राइली सेना ने पुष्टि की। यह हमला शुक्रवार को हुआ जब हिजबुल्लाह की नेतृत्व टीम अपने मुख्यालय में मिल रही थी। नसरल्लाह के अलावा और भी हिजबुल्लाह कमांडरों की मौत हुई है। इस हमले से मध्यपूर्व में तनाव बढ़ गया है।