जैवलीन एक तरह का बायोफ्यूल है जो पौधों के तेल या अल्कोहल से तैयार किया जाता है। पेट्रोल या डीजल की जगह इसे ट्रक, कार और गर्मी के सिस्टम में इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आप ईंधन पर खर्च कम करना चाहते हैं या पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो जैवलीन एक बढ़िया विकल्प बन सकता है।
भारत में अभी तक जैवलीन का स्केल्ड उत्पादन नहीं हुआ, लेकिन छोटे-छोटे प्रयोग शौकिया और किसान स्तर पर चल रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इसे स्थानीय सामग्री से बनाया जा सकता है, जैसे सूरजमुखी, सरसों या अलसी का तेल। इससे आयातित तेल पर निर्भरता घटती है और किसानों को नया आय स्रोत मिलता है।
घर पर जैवलीन बनाना बिलकुल मुश्किल नहीं है, बस कुछ बेसिक चीज़ों की जरूरत पड़ेगी:
सबसे पहले तेल को गरम करें, फिर धीरे‑धीरे मेथनॉल डालें और लगातार हिलाते रहें। मिश्रण को लगभग 30‑40 मिनट तक हिलाते रहने से एस्टरिफिकेशन पूरा हो जाता है। अंत में चमचा या छाननी से ठोस सैप या गंधक को हटाएँ, और आपका जैवलीन तैयार है। इसे ठंडे स्थान पर रखकर उपयोग करें।
ध्यान रखें: मेथनॉल ज्वलनशील है, इसलिए खुली आग या धुएँ से दूर काम करें। अगर पहली बार बना रहे हों तो छोटे बैच से शुरू करें और धीरे‑धीरे मात्रा बढ़ाएँ।
जैवलीन का मुख्य फायदा यह है कि इसका कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। क्योंकि तेल का उत्पादन तब तक नहीं रोका जाता जब तक पौधे जड़ से कार्बन नहीं पकड़ लेता, इसलिए जलते समय हटने वाला CO₂ पहले से ही पेड़ द्वारा सोखा गया होता है। इससे वायुमंडलीय प्रदूषण घटता है।
इसे कई क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है:
सिर्फ़ ईंधन के खर्च में बचत नहीं, बल्कि स्थानीय रोजगार भी बढ़ता है क्योंकि तेल उत्पादन और जैवलीन निर्माण दो नई नौकरी के रूप बनते हैं। सरकार भी इस दिशा में कई सब्सिडी और प्रोत्साहन योजना चला रही है, इसलिए अगर आप इस व्यवसाय में कदम रखना चाहते हैं तो पहले स्थानीय नई नीति देख लीजिए।
अंत में, जैवलीन का भविष्य उज्जवल है लेकिन सही जानकारी और सुरक्षित प्रक्रिया अपनाना जरूरी है। अगर आप अभी शुरुआत कर रहे हैं तो छोटे बैच से प्रयोग करें, नतीजे नोट करें और धीरे‑धीरे स्केल बढ़ाएँ। ऐसी ही छोटी-छोटी कोशिशें मिलकर बड़े बदलाव लाएंगी।
भारत के ओलंपिक जैवलीन चैंपियन, नीरज चोपड़ा ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने 28 मई को चेक रिपब्लिक में आयोजित ओस्ट्रावा गोल्डन स्पाइक मीट से सावधानी के तहत अपना नाम वापस लिया है, चोट के कारण नहीं। चोपड़ा ने अपने अभ्यास के दौरान अडड्यूसर मांसपेशियों में असामान्य संवेदनाओं का अनुभव किया, जिसकी वजह से उन्होंने अपने स्वास्थ्य को ओलंपिक वर्ष में प्राथमिकता दी है।