वेतन न मिलने के कारण शुरू हुई हड़तालें अचानक रुक गईं — लेकिन ये रुकावट खुशी का नहीं, बल्कि एक टेंशन भरा रुकावट है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से लेकर बिहार के भाबुआ तक, छह राज्यों में कर्मचारियों और ठेकेदारों ने बकाया वेतन के लिए सड़क पर उतर दिया, लेकिन अब उन्हें लिखित आश्वासन मिल गया है... बस ये आश्वासन निकालने के लिए जितना दबाव बनाया गया, उतना ही अब इसे पूरा करने के लिए भी बरकरार रहना चाहिए।
जगदलपुर: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक कर्मचारी संघ ने 17 नवंबर, 2025 को शुरू होने वाली अनिश्चितकालीन हड़ताल स्थगित कर दी, जब सहकारिता मंत्री ने लिखित आश्वासन दिया कि सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली में लंबित पेटीशन के निर्णय के 15 दिनों के भीतर वेतनवृद्धि और डीए का भुगतान किया जाएगा। इस फैसले के बाद, अनिल सामंत द्वारा रिपोर्ट किए गए अनुसार, कर्मचारी संघ ने शनिवार की शाम 6:30 बजे आधिकारिक रूप से हड़ताल रद्द कर दी। लेकिन ये आश्वासन अभी भी एक बादल के ऊपर बना हुआ है — अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देर से आया, तो फिर से आंदोलन शुरू हो सकता है।
पलवल: कूड़ा नहीं उठ रहा, वेतन नहीं मिल रहा
हरियाणा के पलवल में दो महीने से वेतन न मिलने के कारण भारतीय एचआर सेल्यूशन कंपनी के सफाई कर्मचारियों ने बृहस्पतिवार को हड़ताल शुरू कर दी। परिणाम? शहर के 31 वार्डों में डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने का काम ठप। शनिवार को कंपनी के प्रतिनिधि सचिन ने कर्मचारियों को 5 दिसंबर, 2025 तक वेतन भुगतान का आश्वासन दिया। लेकिन एक बात स्पष्ट है — अगर 5 दिसंबर तक पैसा नहीं आया, तो हड़ताल फिर से शुरू होगी। और ये नहीं कि कंपनी के पास पैसा नहीं है — सचिन ने कहा, "नगर परिषद ने अब तक एक भी रुपया नहीं भेजा।" यहाँ समस्या असल में शहरी निकायों की वित्तीय अक्षमता है।
फुसरो: वाहन चालकों का अनुनय
झारखंड के फुसरो नगर परिषद के परिसर में शनिवार को राजीव रंजन, कार्यपालक पदाधिकारी, ने कर्मचारियों और वाहन चालकों के साथ बातचीत की। इस बैठक के बाद, उन्हें 5 दिसंबर, 2025 तक वेतन बढ़ोतरी और बकाया एरियर भुगतान का लिखित आश्वासन दिया गया। भारतीय सुदर्शन समाज महासंघ के प्रदेश कोषाध्यक्ष रवींद्र राम ने स्पष्ट किया: "नगर प्रशासन का दायित्व है कि सफाई कर्मियों की सुविधाओं का ख्याल रखे।" इस बैठक में सेवक राम, सिकंदर राम, गौरीशंकर राम, दामू कुमार और अन्य 10 से अधिक कर्मचारी मौजूद थे — ये सिर्फ नाम नहीं, ये वो लोग हैं जिनके घरों में अब तक चावल नहीं आया।
नागपुर: 150 करोड़ का बकाया, और चार दिन का समय
महाराष्ट्र के नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन के लिए ठेकेदारों ने 150 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान के लिए 3 दिन तक काम बंद रखा। विभाग के सचिव संजय दशपुते और मुख्य अभियंता संभाजी माने ने वित्त विभाग के अधिकारियों से बातचीत कर 3-4 दिनों में फंड उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। ठेकेदारों ने चेतावनी दी — अगर 4-5 दिनों में पैसा नहीं मिला, तो आंदोलन और भी तीव्र होगा। ये नहीं कि शहर के पास पैसा नहीं है — ये बात है कि बजट के अनुसार फंड आगे बढ़ रहा है, लेकिन उसका वितरण बेकाबू है।
बलिया: दो दिन का वादा, लेकिन कौन जिम्मेदार?
उत्तर प्रदेश के बलिया में नगर पालिका कर्मचारियों ने 12 मांगों के साथ हड़ताल की। सीआरओ त्रिभुवन ने आश्वासन दिया कि दो दिनों में चेयरमैन के हस्ताक्षर के बाद भुगतान किया जाएगा। अगर नहीं हुआ, तो शासन से वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। यहाँ दिलचस्प बात ये है कि राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष वेद प्रकाश पांडेय और मंत्री विनोद मिश्रा ने आंदोलन को समर्थन दिया — लेकिन अब ये दोनों एक दूसरे के लिए बलिदान बनने को तैयार हैं? ये राजनीति का खेल है, न कि प्रशासन का जवाब।
भाबुआ: धान की खरीद बंद, फिर फिर से शुरू
बिहार के भाबुआ में बीसीओ पैक्स के अध्यक्ष ने चावल के बकाया भुगतान के लिए 1 दिसंबर, 2025 से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की। इसके बाद सरकार ने मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया — और इसके बाद 5 दिसंबर से धान की खरीद फिर से शुरू होगी। ये एक बार फिर दिखाता है कि खेती के लिए भुगतान के लिए आंदोलन करना पड़ता है। ये नहीं कि सरकार के पास पैसा नहीं है — ये बात है कि उसका बंटवारा कैसे होता है।
राष्ट्रव्यापी असंतोष का नक्शा
मार्च 2025 में बैंक कर्मचारी संघों ने दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल स्थगित की थी, जब मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) ने नई दिल्ली में सुलह बैठक बुलाई थी। अब ये देखा जा रहा है कि ये सुलह बैठकें कितनी असरदार हैं। अगर वेतन भुगतान के लिए हर बार हड़ताल की जरूरत पड़ रही है, तो ये सिर्फ एक व्यवस्था की असफलता है — न कि एक अस्थायी समस्या।
क्या ये सिर्फ वेतन की बात है?
नहीं। ये एक बड़े असंतोष का प्रतीक है — जहाँ नगर परिषदों के पास पैसा है, लेकिन उसका वितरण नहीं होता। जहाँ राज्य सरकारें बजट बनाती हैं, लेकिन उसका निष्पादन नहीं करतीं। ये एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ आम आदमी का वेतन राजनीति के खेल का हिस्सा बन गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
हड़ताल स्थगित होने के बाद भी क्या वेतन निश्चित रूप से मिलेगा?
नहीं, आश्वासन और वास्तविकता अलग हैं। छत्तीसगढ़ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है, जो 3-6 महीने ले सकता है। पलवल और फुसरो में 5 दिसंबर तक का समय सीमा है, लेकिन अगर नगर परिषद के पास पैसा नहीं है, तो ये आश्वासन एक कागज का टुकड़ा बन जाएगा। इतिहास दिखाता है कि 70% ऐसे आश्वासनों का पालन नहीं होता।
क्यों इतने राज्यों में एक साथ हड़तालें हुईं?
इसका कारण एक ही है — शहरी निकायों और राज्य सरकारों का वित्तीय अक्षमता। वित्त विभागों में पैसा बंद है, लेकिन उसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा। इसके अलावा, सामाजिक मीडिया ने इन हड़तालों को तेजी से फैलाया, जिससे एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का रूप धारण कर लिया।
सफाई कर्मचारियों की हड़ताल क्यों इतनी प्रभावशाली है?
क्योंकि ये वह वर्ग हैं जिनकी अनदेखी की जाती है — लेकिन जब वे बंद हो जाते हैं, तो शहर का सारा स्वच्छता व्यवस्था ठप। पलवल में 31 वार्डों में कूड़ा जमा हो गया — ये सिर्फ गंदगी नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य के लिए खतरा है। इसलिए ये हड़तालें जनता के लिए अदृश्य नहीं होतीं।
क्या इस तरह की हड़तालें भविष्य में रोकी जा सकती हैं?
हाँ, अगर राज्य सरकारें एक अलग वित्तीय प्रणाली अपनाएं — जहाँ नगर परिषदों के लिए बजट निर्धारित हो, और उसका निष्पादन अलग अधिकारी द्वारा निगरानी किया जाए। अभी तक बजट बनाने वाले और भुगतान करने वाले एक ही विभाग हैं — जिससे दुरुपयोग होता है।
क्या इन हड़तालों का कोई राजनीतिक प्रभाव होगा?
जरूर। अगर 5 दिसंबर के बाद भी वेतन नहीं मिला, तो ये हड़तालें अगले चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकती हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में, जहाँ शहरी श्रमिकों की संख्या अधिक है, ये आंदोलन वोट के रूप में बदल सकते हैं।
क्या इन कर्मचारियों के लिए कोई लंबे समय का समाधान है?
हाँ — एक अलग नियंत्रण निकाय जो सीधे राज्य सरकार के तहत काम करे, जिसका कार्य वेतन भुगतान का निरीक्षण हो। इसके अलावा, नगर परिषदों को अपने टैक्स राजस्व का 30% अनिवार्य रूप से वेतन भुगतान के लिए आरक्षित करना चाहिए। बिना ऐसे कानून के, ये हड़तालें बार-बार दोहराई जाएंगी।