छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड सहित 6 राज्यों में वेतन आश्वासन पर हड़तालें स्थगित

घर छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड सहित 6 राज्यों में वेतन आश्वासन पर हड़तालें स्थगित

छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड सहित 6 राज्यों में वेतन आश्वासन पर हड़तालें स्थगित

8 दिस॰ 2025

在 : Sharmila PK राजनीति टिप्पणि: 18

वेतन न मिलने के कारण शुरू हुई हड़तालें अचानक रुक गईं — लेकिन ये रुकावट खुशी का नहीं, बल्कि एक टेंशन भरा रुकावट है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से लेकर बिहार के भाबुआ तक, छह राज्यों में कर्मचारियों और ठेकेदारों ने बकाया वेतन के लिए सड़क पर उतर दिया, लेकिन अब उन्हें लिखित आश्वासन मिल गया है... बस ये आश्वासन निकालने के लिए जितना दबाव बनाया गया, उतना ही अब इसे पूरा करने के लिए भी बरकरार रहना चाहिए।

जगदलपुर: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक कर्मचारी संघ ने 17 नवंबर, 2025 को शुरू होने वाली अनिश्चितकालीन हड़ताल स्थगित कर दी, जब सहकारिता मंत्री ने लिखित आश्वासन दिया कि सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली में लंबित पेटीशन के निर्णय के 15 दिनों के भीतर वेतनवृद्धि और डीए का भुगतान किया जाएगा। इस फैसले के बाद, अनिल सामंत द्वारा रिपोर्ट किए गए अनुसार, कर्मचारी संघ ने शनिवार की शाम 6:30 बजे आधिकारिक रूप से हड़ताल रद्द कर दी। लेकिन ये आश्वासन अभी भी एक बादल के ऊपर बना हुआ है — अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला देर से आया, तो फिर से आंदोलन शुरू हो सकता है।

पलवल: कूड़ा नहीं उठ रहा, वेतन नहीं मिल रहा

हरियाणा के पलवल में दो महीने से वेतन न मिलने के कारण भारतीय एचआर सेल्यूशन कंपनी के सफाई कर्मचारियों ने बृहस्पतिवार को हड़ताल शुरू कर दी। परिणाम? शहर के 31 वार्डों में डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने का काम ठप। शनिवार को कंपनी के प्रतिनिधि सचिन ने कर्मचारियों को 5 दिसंबर, 2025 तक वेतन भुगतान का आश्वासन दिया। लेकिन एक बात स्पष्ट है — अगर 5 दिसंबर तक पैसा नहीं आया, तो हड़ताल फिर से शुरू होगी। और ये नहीं कि कंपनी के पास पैसा नहीं है — सचिन ने कहा, "नगर परिषद ने अब तक एक भी रुपया नहीं भेजा।" यहाँ समस्या असल में शहरी निकायों की वित्तीय अक्षमता है।

फुसरो: वाहन चालकों का अनुनय

झारखंड के फुसरो नगर परिषद के परिसर में शनिवार को राजीव रंजन, कार्यपालक पदाधिकारी, ने कर्मचारियों और वाहन चालकों के साथ बातचीत की। इस बैठक के बाद, उन्हें 5 दिसंबर, 2025 तक वेतन बढ़ोतरी और बकाया एरियर भुगतान का लिखित आश्वासन दिया गया। भारतीय सुदर्शन समाज महासंघ के प्रदेश कोषाध्यक्ष रवींद्र राम ने स्पष्ट किया: "नगर प्रशासन का दायित्व है कि सफाई कर्मियों की सुविधाओं का ख्याल रखे।" इस बैठक में सेवक राम, सिकंदर राम, गौरीशंकर राम, दामू कुमार और अन्य 10 से अधिक कर्मचारी मौजूद थे — ये सिर्फ नाम नहीं, ये वो लोग हैं जिनके घरों में अब तक चावल नहीं आया।

नागपुर: 150 करोड़ का बकाया, और चार दिन का समय

महाराष्ट्र के नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन के लिए ठेकेदारों ने 150 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान के लिए 3 दिन तक काम बंद रखा। विभाग के सचिव संजय दशपुते और मुख्य अभियंता संभाजी माने ने वित्त विभाग के अधिकारियों से बातचीत कर 3-4 दिनों में फंड उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। ठेकेदारों ने चेतावनी दी — अगर 4-5 दिनों में पैसा नहीं मिला, तो आंदोलन और भी तीव्र होगा। ये नहीं कि शहर के पास पैसा नहीं है — ये बात है कि बजट के अनुसार फंड आगे बढ़ रहा है, लेकिन उसका वितरण बेकाबू है।

बलिया: दो दिन का वादा, लेकिन कौन जिम्मेदार?

उत्तर प्रदेश के बलिया में नगर पालिका कर्मचारियों ने 12 मांगों के साथ हड़ताल की। सीआरओ त्रिभुवन ने आश्वासन दिया कि दो दिनों में चेयरमैन के हस्ताक्षर के बाद भुगतान किया जाएगा। अगर नहीं हुआ, तो शासन से वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। यहाँ दिलचस्प बात ये है कि राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष वेद प्रकाश पांडेय और मंत्री विनोद मिश्रा ने आंदोलन को समर्थन दिया — लेकिन अब ये दोनों एक दूसरे के लिए बलिदान बनने को तैयार हैं? ये राजनीति का खेल है, न कि प्रशासन का जवाब।

भाबुआ: धान की खरीद बंद, फिर फिर से शुरू

बिहार के भाबुआ में बीसीओ पैक्स के अध्यक्ष ने चावल के बकाया भुगतान के लिए 1 दिसंबर, 2025 से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की। इसके बाद सरकार ने मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया — और इसके बाद 5 दिसंबर से धान की खरीद फिर से शुरू होगी। ये एक बार फिर दिखाता है कि खेती के लिए भुगतान के लिए आंदोलन करना पड़ता है। ये नहीं कि सरकार के पास पैसा नहीं है — ये बात है कि उसका बंटवारा कैसे होता है।

राष्ट्रव्यापी असंतोष का नक्शा

मार्च 2025 में बैंक कर्मचारी संघों ने दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल स्थगित की थी, जब मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) ने नई दिल्ली में सुलह बैठक बुलाई थी। अब ये देखा जा रहा है कि ये सुलह बैठकें कितनी असरदार हैं। अगर वेतन भुगतान के लिए हर बार हड़ताल की जरूरत पड़ रही है, तो ये सिर्फ एक व्यवस्था की असफलता है — न कि एक अस्थायी समस्या।

क्या ये सिर्फ वेतन की बात है?

नहीं। ये एक बड़े असंतोष का प्रतीक है — जहाँ नगर परिषदों के पास पैसा है, लेकिन उसका वितरण नहीं होता। जहाँ राज्य सरकारें बजट बनाती हैं, लेकिन उसका निष्पादन नहीं करतीं। ये एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ आम आदमी का वेतन राजनीति के खेल का हिस्सा बन गया है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

हड़ताल स्थगित होने के बाद भी क्या वेतन निश्चित रूप से मिलेगा?

नहीं, आश्वासन और वास्तविकता अलग हैं। छत्तीसगढ़ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है, जो 3-6 महीने ले सकता है। पलवल और फुसरो में 5 दिसंबर तक का समय सीमा है, लेकिन अगर नगर परिषद के पास पैसा नहीं है, तो ये आश्वासन एक कागज का टुकड़ा बन जाएगा। इतिहास दिखाता है कि 70% ऐसे आश्वासनों का पालन नहीं होता।

क्यों इतने राज्यों में एक साथ हड़तालें हुईं?

इसका कारण एक ही है — शहरी निकायों और राज्य सरकारों का वित्तीय अक्षमता। वित्त विभागों में पैसा बंद है, लेकिन उसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा। इसके अलावा, सामाजिक मीडिया ने इन हड़तालों को तेजी से फैलाया, जिससे एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का रूप धारण कर लिया।

सफाई कर्मचारियों की हड़ताल क्यों इतनी प्रभावशाली है?

क्योंकि ये वह वर्ग हैं जिनकी अनदेखी की जाती है — लेकिन जब वे बंद हो जाते हैं, तो शहर का सारा स्वच्छता व्यवस्था ठप। पलवल में 31 वार्डों में कूड़ा जमा हो गया — ये सिर्फ गंदगी नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य के लिए खतरा है। इसलिए ये हड़तालें जनता के लिए अदृश्य नहीं होतीं।

क्या इस तरह की हड़तालें भविष्य में रोकी जा सकती हैं?

हाँ, अगर राज्य सरकारें एक अलग वित्तीय प्रणाली अपनाएं — जहाँ नगर परिषदों के लिए बजट निर्धारित हो, और उसका निष्पादन अलग अधिकारी द्वारा निगरानी किया जाए। अभी तक बजट बनाने वाले और भुगतान करने वाले एक ही विभाग हैं — जिससे दुरुपयोग होता है।

क्या इन हड़तालों का कोई राजनीतिक प्रभाव होगा?

जरूर। अगर 5 दिसंबर के बाद भी वेतन नहीं मिला, तो ये हड़तालें अगले चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकती हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में, जहाँ शहरी श्रमिकों की संख्या अधिक है, ये आंदोलन वोट के रूप में बदल सकते हैं।

क्या इन कर्मचारियों के लिए कोई लंबे समय का समाधान है?

हाँ — एक अलग नियंत्रण निकाय जो सीधे राज्य सरकार के तहत काम करे, जिसका कार्य वेतन भुगतान का निरीक्षण हो। इसके अलावा, नगर परिषदों को अपने टैक्स राजस्व का 30% अनिवार्य रूप से वेतन भुगतान के लिए आरक्षित करना चाहिए। बिना ऐसे कानून के, ये हड़तालें बार-बार दोहराई जाएंगी।

टिप्पणि
Ayushi Kaushik
Ayushi Kaushik
दिस॰ 10 2025

इन सफाई कर्मचारियों के बिना शहर जीवित नहीं रह सकता, लेकिन उनकी आवाज़ तब तक नहीं सुनी जाती जब तक कूड़ा गलियों में ढेर नहीं हो जाता। ये सिर्फ वेतन की बात नहीं, ये इंसानियत की बात है।

Basabendu Barman
Basabendu Barman
दिस॰ 10 2025

अरे भाई, ये सब चाल है। जब भी सरकार के पास पैसा नहीं होता, तो वो सुप्रीम कोर्ट का नाम लेती है। पर असल में, ये सब चुनावी दबाव के लिए बनाया गया नाटक है। अगर वो वाकई चाहते होते तो पहले ही फंड जारी कर देते।

Krishnendu Nath
Krishnendu Nath
दिस॰ 11 2025

ये हड़तालें बहुत अच्छी हैं भाई! अब तक तो हम चुप रहे लेकिन अब तो बस बहुत हुआ। जब तक आम आदमी का वेतन राजनीति का खेल बना रहेगा, तब तक ये आंदोलन जारी रहेंगे। जय हिंद!

dinesh baswe
dinesh baswe
दिस॰ 12 2025

यहाँ की समस्या ये है कि बजट बनाने वाले और भुगतान करने वाले एक ही विभाग हैं। इसका मतलब है कि कोई नियंत्रण नहीं है। एक स्वतंत्र वित्तीय निगरानी निकाय की जरूरत है, जो सीधे राज्य सरकार के अधीन काम करे।

Boobalan Govindaraj
Boobalan Govindaraj
दिस॰ 13 2025

हर एक कर्मचारी जिसने आज हड़ताल की है, उसके पीछे एक परिवार है जिसने आज चावल नहीं खाया। ये सिर्फ वेतन नहीं, ये जीवन का अधिकार है। हम सब उनके साथ हैं।

mohit saxena
mohit saxena
दिस॰ 14 2025

देखो, ये सब बातें तो सुनी हैं। लेकिन अगर 5 दिसंबर तक पैसा नहीं आया, तो फिर बस एक बार और आंदोलन शुरू कर देना चाहिए। और इस बार सड़क पर नहीं, बल्कि सरकारी ऑफिसों के बाहर।

Sandeep YADUVANSHI
Sandeep YADUVANSHI
दिस॰ 15 2025

ये सब लोग तो बस लाचार हैं। अगर वो अपने काम को समझते तो इतने दिन तक वेतन का इंतजार क्यों करते? ये तो बस एक अनुशासन की कमी है। और ये सब आंदोलन बस आलसी लोगों के लिए बने हैं।

Vikram S
Vikram S
दिस॰ 17 2025

हमारी संस्कृति, हमारी व्यवस्था, हमारा नागरिक जागरूकता-सब तोड़ दिया गया है! ये लोग अपनी नौकरी के लिए हड़ताल कर रहे हैं, लेकिन क्या उन्होंने कभी सोचा कि ये व्यवस्था किसके लिए बनी है? बस एक बार अपने घर की सफाई खुद करो, तो पता चल जाएगा कि ये कर्मचारी कितने जरूरी हैं!

nithin shetty
nithin shetty
दिस॰ 18 2025

मुझे एक बात समझ नहीं आ रही-अगर नगर परिषदों के पास पैसा है, तो फिर वो क्यों नहीं भेज पा रहे? क्या ये बैंक ट्रांसफर में कोई तकनीकी दिक्कत है? या फिर बुरी आदतें? कोई डेटा तो होगा न?

Aman kumar singh
Aman kumar singh
दिस॰ 18 2025

हमारे गाँव में भी ऐसा ही हुआ था। बीसीओ के पास पैसा था, लेकिन उसे भेजने वाला कोई नहीं था। फिर हमने सब एक साथ बैठक की, गाँव के बुजुर्गों को शामिल किया, और एक दिन में ही भुगतान हो गया। ये सब बातें तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन असली समाधान तो लोगों का एकजुट होना है।

UMESH joshi
UMESH joshi
दिस॰ 19 2025

इस व्यवस्था में जब एक व्यक्ति का वेतन राजनीति के खेल में फंस जाता है, तो यह बताता है कि हमारी सामाजिक समझ कितनी गहरी है। ये सिर्फ एक वेतन का मुद्दा नहीं, ये हमारे नैतिक आधार की परीक्षा है। क्या हम उस व्यक्ति को इंसान मानते हैं, जो हमारे घर का कूड़ा उठाता है?

pradeep raj
pradeep raj
दिस॰ 20 2025

इस घटनाक्रम के प्राथमिक तत्वों का विश्लेषण करने पर, हम देखते हैं कि राज्य स्तरीय वित्तीय प्रक्रियाओं में एक संरचनात्मक विकृति मौजूद है, जिसमें बजट निर्धारण और वितरण के बीच एक विच्छेदन है। इसके अतिरिक्त, निगरानी के लिए एक विशिष्ट निकाय की आवश्यकता है, जो स्वतंत्र रूप से वित्तीय प्रवाह की निगरानी कर सके। यह एक निरंतर व्यवस्थागत असफलता का संकेत है।

Vishala Vemulapadu
Vishala Vemulapadu
दिस॰ 21 2025

ये सब तो बस बातें हैं। असली समस्या ये है कि जो लोग बजट बनाते हैं, वो खुद नहीं जानते कि उनका पैसा कहाँ जा रहा है। बस एक फाइल बना दो, एक आश्वासन दे दो, और फिर भूल जाओ।

M Ganesan
M Ganesan
दिस॰ 21 2025

ये सब लोग तो बस देश को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं। जब तक ये लोग अपनी नौकरी के लिए हड़ताल करेंगे, तब तक देश आगे नहीं बढ़ेगा। अगर वो इतने लायक होते तो वो खुद नौकरी छोड़ देते।

ankur Rawat
ankur Rawat
दिस॰ 23 2025

मैं तो सोचता हूँ कि अगर हम इन कर्मचारियों को एक अलग बैंक खाता दे दें, जहाँ सीधे उनका वेतन आए, तो शायद ये समस्या खत्म हो जाए। कोई भी नगर परिषद उस खाते तक नहीं पहुँच सकती। ये तो बस एक छोटा सा बदलाव है, लेकिन असर बहुत बड़ा होगा।

Vraj Shah
Vraj Shah
दिस॰ 25 2025

ये सब बहुत अच्छा है, लेकिन अगर 5 दिसंबर को पैसा नहीं आया तो फिर हम क्या करेंगे? एक बार फिर आंदोलन? या फिर बस चुपचाप बैठ जाएँ? मुझे लगता है हमें एक फोन नंबर बनाना चाहिए, जहाँ लोग रिपोर्ट कर सकें कि वेतन नहीं आया।

Kumar Deepak
Kumar Deepak
दिस॰ 26 2025

अरे भाई, ये सब तो बस एक नाटक है। जब तक नगर परिषद के पास पैसा है, तब तक वो भुगतान नहीं करते। और जब आंदोलन शुरू होता है, तब तक वो बोलते हैं कि ‘हम तो तैयार हैं’। बस एक बार बोल दो-‘हम भी तो आपके जैसे हैं’।

Ganesh Dhenu
Ganesh Dhenu
दिस॰ 27 2025

इन सफाई कर्मचारियों की बात सुनकर लगता है कि हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं। लेकिन असल में, हम सब चुप हैं। शायद इसलिए कि हम उन्हें नहीं देखते।

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