जी.एन. साईबाबा: एक व्यक्ति की कहानी जो प्रणालीगत अन्याय के आगे हार गया

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जी.एन. साईबाबा: एक व्यक्ति की कहानी जो प्रणालीगत अन्याय के आगे हार गया

14 अक्तू॰ 2024

在 : Sharmila PK समाचार टिप्पणि: 13

जी.एन. साईबाबा: एक प्रणालीगत अन्याय की कहानी

जी.एन. साईबाबा का जीवन हमारे समय के गंभीर सामाजिक न्याय के मुद्दों को दर्शाता है। एक समय के सशक्त और प्रभावशाली अधिकारिता आवाज के रूप में, उन्होंने अपनी सशक्त और प्रतिबद्ध विचारधारा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर थे, जिन्होंने अनेक छात्र-छात्राओं को उनके मानवाधिकार और सामाजिक जागरूकता के लिए प्रेरित किया। 2014 में उन पर लगाए गए माओवादी समूहों से संबंध के आरोप ने उनका जीवन बदल डाला। उन्हें गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, यानी UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था।

यह गिरफ्तारी भारतीय न्याय प्रणाली में एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, क्योंकि इसके आधार पर उन पर जो आरोप लगाए गए थे, वह बाद में निराधार साबित हुए। उनका सपना था कि उनकी अखंडता और सामाजिक न्याय के लिए उनका संघर्ष कोर्ट में मान्यता पाए, लेकिन जब 2024 में बंबई हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष घोषित किया, तो स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति ने उनके जीवन को खतरनाक मोड़ पर ला दिया।

साईबाबा 90% विकलांगता के साथ जीवन जीते थे। पोलियो के चलते उनकी शारीरिक स्थिति पहले से ही कई कठिनाइयों से भरी हुई थी। इसके बावजूद, उन्हें जेल में उचित चिकित्सा देखभाल से वंचित रखा गया। उनकी सेहत तेजी से बिगड़ती चली गई, जिसमें उन्होंने दो बार कोविड-19 और एक बार स्वाइन फ्लू का सामना किया। उनका स्वास्थ्य अति गंभीर हो गया, जो अंततः उनके जीवन के अंत का कारण बना।

यह केवल उनकी व्यक्तिगत मानव त्रासदी नहीं है, बल्कि भारतीय जेल प्रणाली के तहत मानवाधिकारों की स्पष्ट अनदेखी भी है। इस मामले ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का ध्यान भी आकर्षित किया, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाही नहीं की गई। संघर्ष के इस सफर में उन्हें कई मानवीय आधारभूत अधिकारों से वंचित रखा गया, जैसे कि उनके मूमेंट के लिए आवश्यक व्हीलचेयर की उपलब्धता।

अमानवीय बर्ताव के आगे झुकी माँ-बेटे की जोड़ी

जी.एन. साईबाबा को अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी माँ के निधन की खबर मिली, लेकिन यहाँ तक कि उन्हें अपनी माँ के अंतिम संस्कार में भी भाग लेने का अवसर नहीं दिया गया। इस पीड़ा ने उनके संघर्ष को और अधिक दुखद बना दिया। इसने स्पष्ट कर दिया कि उन पर अत्यधिक बर्बरता से न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक आघात भी पहुँचाया गया। उनकी माँ का निधन इस प्रणाली में समाज के सबसे कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए एक ज्वलंत सवाल बनता है।

उनकी माँ की इस दिल दहला देने वाली स्थिति ने समाज के बचे हुए विवेक और न्याय की पुकार को और जोरदार बना दिया। माँ-बेटे की इस जोड़ी ने इस वर्षा में जीने की कोशिश की, जो भारतीय न्याय प्रणाली में छिपे संक्रमण को दिखाती है।

UAPA का उपयोग: एक द्वारे का उपकरण

जी.एन. साईबाबा का मामला UAPA, या गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के दुरुपयोग का एक प्रतीक बन गया है। यह कानून न केवल किसी समुदाय को चुप कराने के लिए बल्कि उनकी स्वतंत्रता और आम जनजीवन को प्रतिबंधित करने के लिए भी उपयोग में लाया जा रहा है। इस कानून का अमानवीय रूप जिससे कि साईबाबा जैसे लोग बहुत संघर्ष और कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, ने कई मानवाधिकार संगठनों को आलोचना के प्रेरित किया है।

UAPA के तहत साईबाबा की गिरफ्तारी के बाद, अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता और संगठन सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए। विभिन्न संगठनों ने इस कानून में सुधार की मांग की है, जिससे कि बिना पर्याप्त सबूत के किसी को भी गैर-कानूनी रूप से हिरासत में नहीं रखा जा सके। साईबाबा की घोर पीड़ा से उत्पन्न हुआ यह आंदोलन राजनीतिक कैदियों की आवाज को दुनिया के सामने लाया।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक आवाहन

जी.एन. साईबाबा का जीवन बिना किसी अपराध के परिपूर्ण नहीं था, बल्कि यह उन लोगों के लिए आवाज बनने का मंच था जो न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके निधन के बाद उनके समर्थन में समिति, "समिति फॉर डिफेंस एंड रिलीज ऑफ जी.एन. साईबाबा", ने उनके विरुद्ध हुआ अन्यायपूर्ण बर्ताव को उजागर किया और इसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस समूह ने उनके वर्षों से झेले गए संरक्षण और न्याय की वापसी के लिए अपील की।

उनकी लड़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों नंदिता नारायण और करेन गेब्रियल द्वारा समर्थित थी, जिन्होंने साईबाबा के सेवा वर्ष और नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की, साथ ही उनके काम पर पुनः बहाल करने की भी। इन कार्यकर्ताओं ने यह सुनिश्चित किया कि उनके आदर्श जीवित रहते और समाज में समानता और न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाते।

हनी बाबू की संघर्ष गाथा

हनी बाबू, जो साईबाबा के लिए एक मजबूत समर्थक थे, बाद में खुद भी उनकी ही तरह आरोपित किए गए। बाबू की गिरफ्तारी ने साईबाबा के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की विफलता को भी जाहिर किया। यह एक चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है कि सच्चाई और न्याय की लड़ाई, हालांकि कठिन, जरूरी है।

उन्होंने साईबाबा की रिहाई के लिए एक अविश्वसनीय साहस दिखाया। बाबू की गिरफ्तारी ने यह बताया कि भारत में व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारिता के लिए लड़ना कितना मुश्किल हो गया है। यह न्याय के लिए एक संघर्ष है जो निरंतरता की मांग करता है।

भारत में मानवाधिकारों की स्थिति

जी.एन. साईबाबा का जीवन और उनकी मृत्यु ने भारतीय न्याय प्रणाली और मानवाधिकारों के मुद्दों पर एक गंभीर द्रष्टि प्रस्तुत की है। उनका संघर्ष यह दर्शाता है कि भारतीय समाज अभी भी उन आदर्शों को प्राप्त करने से कितना दूर हैं जिन्हें संविधान में लिखा गया है। यह भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक जागरूकता की घड़ी है। यह देखना महत्वपूर्ण है कि यह प्रणाली कैसे सुधार करती है और मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करती है।

आज साईबाबा के योगदान और उनके संघर्ष को याद करना यह सुनिश्चित करता है कि उनके जैसे लोगों की आवाज़ें हमेशा सुनी जाएँ। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उन्हें न्याय दिलाने के संघर्ष को कैसे आगे बढ़ाते हैं, जो कई बार गलत तरीके से बदनाम किए गए थे। उनके योगदान का यह सम्मान करना हम पर है, और यह सुनिश्चित करना कि मानवाधिकार के लिए उनकी सुभाषित आवाज़ कभी खामोश न हो।

टिप्पणि
Jasmeet Johal
Jasmeet Johal
अक्तू॰ 14 2024

ये सब बकवास है जी.एन. साईबाबा को बस एक आर्टिस्ट की तरह बुलाया गया था जिसने अपने बारे में ज्यादा सोचा
जेल में बीमार हो गया तो उसकी गलती क्या है?

Abdul Kareem
Abdul Kareem
अक्तू॰ 16 2024

इस केस में सबसे डरावनी बात ये है कि कोई भी न्याय नहीं मिला बिना सबूत के गिरफ्तारी और फिर निर्दोष ठहराए जाने के बाद भी कोई माफी नहीं
ये तो सिस्टम की बीमारी है

Namrata Kaur
Namrata Kaur
अक्तू॰ 17 2024

माँ के अंतिम संस्कार में भी नहीं जाने देना... ये इंसानी नहीं बल्कि जानवरों जैसा बर्ताव है

indra maley
indra maley
अक्तू॰ 19 2024

हम जो न्याय की बात करते हैं वो तो बस बातें हैं
जब तक हम अपने आसपास के अन्याय को देखकर चुप रहेंगे तब तक कोई बदलाव नहीं आएगा
साईबाबा ने जो लड़ाई लड़ी वो असली न्याय की लड़ाई थी
हम बस उसकी कहानी सुनकर रो रहे हैं लेकिन खुद को बदलने की कोशिश नहीं कर रहे
ये तो सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं बल्कि हमारे समाज के दिल की मृत्यु है
हमने अपने आप को इतना ठंडा कर लिया है कि अब किसी की पीड़ा भी नहीं दिखती
हम लोग बाहर नारे लगाते हैं लेकिन अंदर चुप रहते हैं
ये सब बहाना है जिससे हम अपनी निष्क्रियता को छुपाते हैं
साईबाबा की मृत्यु ने हमें एक सवाल पूछा है
हम क्या कर रहे हैं अपने न्याय के लिए?
क्या हम बस इंतजार कर रहे हैं कि कोई और लड़े?
ये सवाल हमें अपने आप से पूछना चाहिए

Kiran M S
Kiran M S
अक्तू॰ 19 2024

मुझे लगता है कि ये सब एक नए तरह के डायलेक्टिकल मार्क्सवाद का उदाहरण है
एक व्यक्ति को बहुत बड़ा बनाया जा रहा है जो असल में सिर्फ एक शिक्षक था
लेकिन जब तक हम इन नाटकों को नहीं रोकेंगे तब तक न्याय अपने आप में बर्बाद होता रहेगा
मानवाधिकार के नाम पर कोई भी बात नहीं चलनी चाहिए जो राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ हो

Paresh Patel
Paresh Patel
अक्तू॰ 19 2024

ये कहानी सुनकर दिल टूट गया
लेकिन अब रोने का नहीं बल्कि काम करने का वक्त है
हम सब एक छोटी सी चीज़ कर सकते हैं
किसी भी ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करें जिसे अन्याय हुआ हो
इस तरह की कहानियाँ भूली नहीं जानी चाहिए
हमें इसे आगे बढ़ाना होगा

anushka kathuria
anushka kathuria
अक्तू॰ 19 2024

इस घटना के आधार पर भारतीय न्याय प्रणाली की विफलता का विश्लेषण करना आवश्यक है। न्याय की अवधारणा को संवैधानिक ढांचे के साथ समन्वित करना होगा। अतिरिक्त विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए न्यायिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट नीतियों की आवश्यकता है।

Noushad M.P
Noushad M.P
अक्तू॰ 21 2024

uapa ka istemal galat nahi hai agar koi aadmi videshi sarkar ke saath mila hua ho
aise logon ko jail me rakhna hi sahi hai
aur haan uski maa ki maut ka kya koi jimmewari hai?
usne khud apne bete ko galat raah par chala diya

Sanjay Singhania
Sanjay Singhania
अक्तू॰ 22 2024

इस मामले में फूल्स कॉन्स्कियनसनेस और रेवोल्यूशनरी फेलिशिस्म का एक अद्भुत उदाहरण है
साईबाबा एक इंटेलेक्चुअल एलिटिस्ट थे जिन्होंने एक फिलोसोफिकल फ्रेमवर्क को एक जन आंदोलन में बदलने की कोशिश की
लेकिन जब ये सिस्टम ने उनके डिस्कोर्स को अन्याय के रूप में परिभाषित कर दिया तो वो निर्दोष हो गए
ये तो डिस्कर्सिव फैसले का एक अद्भुत उदाहरण है

Raghunath Daphale
Raghunath Daphale
अक्तू॰ 22 2024

अरे भाई ये सब बकवास है जिसने भी लिखा है वो अपने आप को बहुत बड़ा समझता है
कोई जेल में बीमार हो जाए तो उसे न्याय दोगे क्या?
उसकी माँ की मौत का क्या करेंगे?
माँ को तो बच्चों के लिए जिया करते हैं ना यार 😔

Renu Madasseri
Renu Madasseri
अक्तू॰ 23 2024

हम इस बात को भूल गए हैं कि न्याय का मतलब सिर्फ निर्दोष ठहराना नहीं है
मतलब ये है कि तुम्हारी जिंदगी वापस आ जाए
साईबाबा को जेल में रखकर हमने उनकी जिंदगी ले ली
अब उनकी याद में हमें बस एक बात करनी है
कि हम आगे बढ़ेंगे और ऐसा कोई नहीं होने देंगे

Aniket Jadhav
Aniket Jadhav
अक्तू॰ 24 2024

साईबाबा के बारे में पढ़कर बहुत दुख हुआ
लेकिन अब बस रोएंगे नहीं
हम लोग अपने आसपास के लोगों को बताएंगे
और उनकी कहानी आगे बढ़ाएंगे
क्योंकि अगर हम चुप रहे तो ये कहानी भी भूल जाएगी

Anoop Joseph
Anoop Joseph
अक्तू॰ 24 2024

ये जो हुआ वो गलत था।

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