जब बात बायबैक, कंपनी द्वारा अपने जारी किए हुए शेयरों को वापस खरीदने की प्रक्रिया की आती है, तो यह निवेशकों और बाजार दोनों के लिए कई संकेत देता है। इसी को अक्सर शेयर पुनर्खरीद कहा जाता है। बायबैक का मुख्य मकसद मौजूदा शेयरधारकों को मूल्य बढ़ाना, परफॉर्मेंस को आंकना और कभी‑कभी अतिरिक्त नकदी को प्रभावी रूप से इस्तेमाल करना होता है। नीचे हम बायबैक के प्रमुख पहलुओं को बारीकी से देखेंगे।
कंपनी जब बायबैक करती है, तो सबसे पहले बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मंजूरी लेती है और फिर नियामक दिशा-निर्देशों के अनुसार योजना बनाती है। बायबैक के दो मुख्य कारण होते हैं: पहली, शेयरधारकों को अतिरिक्त रिटर्न देना, ताकि उनकी होल्डिंग की मूल्यवृद्धि हो; दूसरी, बाजार में शेयर की पूंजी संरचना को संतुलित करना, जिससे डायल्यूशन कम हो। अक्सर कंपनियां अपने नकदी भंडार या रोकड़ को उपयोगी बनाकर यह कदम उठाती हैं, जिससे शेयरधारकों को भरोसा मिलता है और कंपनी की वित्तीय मजबूती का प्रमाण मिलता है।
बायबैक का असर सीधे शेयर, कंपनी की इक्विटी का वह भाग जो निवेशकों को मालिकाना अधिकार देता है की कीमत पर पड़ता है। जब कंपनी बड़ी मात्रा में शेयर खरीदती है, तो बचे हुए शेयरों की आपूर्ति घटती है, जिससे मांग‑आपूर्ति सिद्धांत के अनुसार कीमत बढ़ने की संभावना होती है। इसके अलावा, बायबैक से प्रति शेयर आय (EPS) भी बढ़ती है, क्योंकि कुल शेयर संख्या घटती है जबकि कुल आय समान रहती है। निवेशक अक्सर इस संकेत को सकारात्मक मानते हैं, क्योंकि यह दर्शाता है कि कंपनी को भविष्य में विकास की संभावना दिखती है और वह अपने शेयरों को उचित मूल्य पर मानती है।
बायबैक की घोषणा अक्सर स्टॉक मार्केट, सफ़ल व्यापार मंच जहाँ शेयर खरीद‑बेच होते हैं में हलचल पैदा करती है। बाजार के विश्लेषक बायबैक के कारणों को समझकर स्टॉक की संभावित चाल का अनुमान लगाते हैं। कुछ मामलों में बायबैक के बाद शेयर की स्थिरता या छोटे‑छोटे उतार‑चढ़ाव देखे जाते हैं, जबकि कभी‑कभी इस प्रक्रिया से शेयर की दीर्घकालिक रिटर्न में बढ़ोतरी होती है। नियामक संस्थाएं जैसे SEBI बायबैक के नियम निर्धारित करती हैं, जिसमें अधिकतम खरीद सीमा, टाइम‑लाइन और खुली जानकारी प्रदान करने की जिम्मेदारी शामिल है। ये नियम पारदर्शिता बनाए रखते हैं और निवेशकों को भरोसा दिलाते हैं।
हाल के वर्षों में भारत में कई प्रमुख कंपनियों ने बायबैक का विकल्प अपनाया है—जैसे LG इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया का IPO के बाद शेयर पुनर्खरीद, या विभिन्न फ़िनटेक व स्टार्ट‑अप्स ने अपनी शुरुआती फंडिंग के बाद बायबैक किया है। यह रुझान दर्शाता है कि बायबैक अब सिर्फ बड़े सार्वजनिक कंपनियों तक सीमित नहीं, बल्कि मझोले स्तर की कंपनियों में भी लोकप्रिय हो रहा है। नीचे आप देखेंगे कि इस टैग के अंतर्गत कौन‑से नवीनतम बायबैक संबंधी समाचार और विश्लेषण उपलब्ध हैं। इन लेखों में बायबैक के प्रभाव, रणनीतिक कारण और निवेशकों के लिए संभावित लाभों पर गहन चर्चा की गई है। अब आगे बढ़ते हुए इन लेखों को पढ़ें और अपने निवेश निर्णय को सुदृढ़ बनाएं।
इन्फोसिस के प्रमोटरों ने 22 अक्टूबर को 18,000 करोड़ बायबैक से बाहर रहने का फैसला किया, जिससे शेयर कीमतें उछली और टैक्स‑संबंधी कारण उभरे।