क्या आपने कभी सोचा है कि एक ऐसी मिसाइल जो ध्वनि की पांच गुना तेज़ चलती हो, वह कैसे काम करती है? वही है BrahMos मिसाइल – भारत और रूस के सहयोग से बनी, जिसे अक्सर भारत की सबसे उन्नत एंटी‑शिप मिसाइल कहा जाता है। इस लेख में हम इसे आसान शब्दों में समझेंगे, उसकी ताकत, उपयोग और भविष्य की योजनाओं पर नजर डालेंगे।
BrahMos नाम दो नदियों के नाम से आया है – ब्रह्मपुत्र (बहली) और मॉस (नदीन) – जो भारत‑रूस सहयोग का प्रतीक है। यह मिसाइल सबसे पहले 2001 में परीक्षण में सफल रही और तब से कई बार अपडेट की गई। इसकी सबसे बड़ी खूबी है सुपरक्रूज़ गति (Mach 2.8‑3.0), यानी ध्वनि की लगभग तीन गुना तेज़। इस तेज़ी से टारगेट को मारना आसान हो जाता है, क्योंकि विरोधी के पास प्रतिक्रिया करने का समय बहुत कम रहता है।
बात करें स्पेसिफिकेशन की, तो BrahMos की रेंज लगभग 290 km तक है (नवीनीकृत संस्करण में 400 km तक)। यह भूमि‑से‑भू, समुद्र‑से‑भू, समुद्र‑से‑समुद्र, और एंटी‑शिप टारगेट को गाइड कर सकता है। परम्परागत टॉप-ऑफ़-लाइन (टॉप‑एयर) मॉड्यूल के साथ, इसे किसी भी फाइटर जेट, बोरिंग या सब‑मर्शीनेबल प्लेटफ़ॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है – जैसे कि भारतीय तेज़ध्वनि लड़ाकू जेट Su‑30 MKI, या नवीनीकृत डेस्ट्रॉयर।
इंटरफ़ेरेंस‑रहित नेविगेशन के लिए यह इनरटिया मेज़रमेंट यूनिट (IMU), ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) और माइकलो‑टिकर (टार्गेट इमेजिंग) का प्रयोग करती है। इसका फ्यूज़न सिस्टम मल्टी‑स्टेज डिस्प्ले देता है, जिससे टारगेट को ठीक उसी क्षण मारता है जब यह सबसे कमजोर स्थिति में हो।
आज तक BrahMos को भारतीय नौसेना के तीन फाल्कन‑II क्लास डेस्ट्रॉयर (INS Kolkata, INS Kochi, INS Kandla) में इंटीग्रेट किया गया है। भारतीय वायुसेना ने भी इसे अपने Su‑30MKI में फिट किया है और भविष्य में इसे रुस्तम, तेजस जैसे क्षैतिजलीन उड़ान विमान में भी स्थापित करने की योजना है। इस मिसाइल की लाइटवेट डिलीवरी (कम ऑपरेटिंग वजन) इसे विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म में लचीलापन देती है।
भू‑से‑भू मोड में, भारत ने इंटीग्रेशन के लिए द्वीपीय बेस और पहले से मौजूद आर/डीएडी के साथ आज़माए गए स्थानों पर लांचिंग का काम किया है। इससे तेज़ी से टारगेट को गिराना संभव हो गया। साथ ही, ब्रह्मोस की कस्टमाइज़ेबल वारहेड विकल्प (परंपरागत वारहेड, पेनिट्रेटिंग या थर्मलजेट) इसे कई स्थितियों में प्रभावी बनाती हैं।
अभी BrahMos को आगे सुधारने की कई योजना पर काम चल रहा है। BrahMos‑II नाम से एक नया वर्ज़न विकसित हो रहा है, जिसमें रेंज 600 km तक बढ़ाने की कोशिश है और स्टीयरिंग में अधिक लचीलापन होगा। इस वर्ज़न में हाइब्रिड‑इंधन सिस्टम भी हो सकता है, जिससे लागत कम होगी।
इसके अलावा, भारत ने चीन‑पीएलए (प्रोटेक्टेड लाँच एरे) और साइबर‑सुरक्षा उपायों को भी इस मिसाइल में एम्बेड किया है, ताकि एंटी‑जैमिंग टैक्टिक्स के खिलाफ संरक्षण मिल सके। इस तरह, BrahMos केवल तेज़ ही नहीं बल्कि विश्वसनीय भी बन रही है।
अगर आप रक्षा क्षेत्र के छात्र हैं या फॉलो‑अप पसंद करते हैं, तो याद रखिए – BrahMos का हर अपडेट भारतीय इंडस्ट्री को नई टेक्नोलॉजी सिखाता है, जैसे सतत विकास, एयरोस्पेस निर्माण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग।
संक्षेप में, BrahMos मिसाइल एक तेज़, बहु‑प्लेटफ़ॉर्म एंटी‑शिप हथियार है, जो भारत की रक्षा क्षमताओं को नई ऊँचाई देता है। चाहे आप फाइटर जेट पर, नौसेना में या जमीन पर बतौर टार्गेट, यह मिसाइल भविष्य के युद्ध में काम आएगी। इस कारण इसे भारतीय सशस्त्र बलों की प्राथमिकता मानना गलत नहीं होगा।
ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी सफलता के बाद भारतीय वायु सेना और नौसेना ब्रह्मोस मिसाइलों की भारी खरीद करने जा रही हैं। नई उत्पादन सुविधा से BrahMos-NG का निर्माण भी होगा, जिससे भारत की सुरक्षा और मेक इन इंडिया को नई मजबूती मिलेगी।