एंजल टैक्स भारत में स्टार्टअप और एंजल निवेशकों के बीच एक बड़ा घर्षण बन गया है। जब कोई नया व्यवसाय बाहरी निवेश लेता है, तो सरकार कुछ मामलों में उस धन पर टैक्स लगा देती है। यह टैक्स तब लगता है जब निवेश की वैल्यूएशन (मूल्यांकन) असामान्य रूप से अधिक मानी जाती है। कई कंपनियों के लिए यह अचानक बड़ा बोझ बन जाता है, खासकर उन कंपनियों के जो अभी लाभ कमाने की शुरुआती अवस्था में हों।
अधिकांश मामलों में, एंजल टैक्स तब लागू होता है जब कंपनी का पोस्ट-मैनी (निवेश के बाद) वैल्यूएशन दो गुना या उससे अधिक हो जाता है। अगर वैल्यूएशन 1 करोड़ रुपये से नीचे है, तो टैक्स नहीं लगता। लेकिन अगर वैल्यूएशन 10 करोड़ या उससे ऊपर हो, तो टैक्स का दायरा बढ़ जाता है और शून्य कर छूट नहीं मिलती। टैक्स की दर सामान्य आयकर दर के बराबर होती है, यानी 30% के साथ सेस और स्वास्थ्य शुल्क भी शामिल होता है।
एंजल टैक्स से बचने के लिए सबसे बुनियादी उपाय है वैल्यूएशन को यथार्थपरक रखना। कई स्टार्टअप अपनी कंपनी का ओवर-प्राइसिंग करते हैं ताकि अधिक फंड जुटा सकें, पर इससे बाद में टैक्स का खतरा बढ़ जाता है। एक वैल्यूएशन को बाजार-आधारित डेटा, comparable companies, और राजस्व प्रोजेक्शन के आधार पर तैयार करना चाहिए। दूसरा उपाय है टर्म शीट में क्लॉज़ डालवाना, जिसमें निवेश की राशि को इक्विटी के साथ नहीं, बल्कि डिबेंचर या प्रेफर्ड शेयर के रूप में दिखाया जाए। इससे वैल्यूएशन के आंकड़े कम दिखते हैं और टैक्स नहीं लगता।
यदि टैक्स अब भी लागू हो गया है तो आप रिवर्स टी.सी.एफ. (Reverse Tax Credit) क्लेम कर सकते हैं। ऐसे क्लेम के लिए सही दस्तावेज़, जैसे कि वैल्यूएशन रिपोर्ट, निवेश समझौता, और कंपनी के वित्तीय स्टेटमेंट पेश करने होते हैं। टैक्स विशेषज्ञ या चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद लेना फायदेमंद रहता है, क्योंकि छोटा‑छोटा विवरण भी क्लेम को अस्वीकृत कर सकता है।
ध्यान रखने वाली बात यह है कि एंजल टैक्स केवल तब लागू होता है जब वैल्यूएशन को सरकारी मानदंडों के अनुसार असंगत माना जाता है। इसलिए, शुरुआती दौर में यदि कंपनी का फंडिंग प्री-सीड या एंजल राउंड में है, तो वैल्यूएशन को 2 करोड़ रुपये से नीचे रखकर टैक्स से बचा जा सकता है। जैसे ही कंपनी की प्रॉफिटबिलिटी दिखने लगे, वैल्यूएशन को धीरे‑धीरे बढ़ाना चाहिए, ताकि टैक्स की सीमा पार न हो।
अंत में, एंजल टैक्स एक कठिन नियम लग सकता है, पर सही योजना और दस्तावेज़ीकरण से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। अपने निवेश समझौते को शुरुआती दौर में ही ठोस बनाकर और वैल्यूएशन को मार्केट बेसिक रखकर आप इस टैक्स की अनावश्यक बोझ से बच सकते हैं। अगर आप स्टार्टअप बना रहे हैं या एंजल निवेश पा रहे हैं, तो इन बातें याद रखें और वित्तीय सलाहकार से समय‑समय पर मिलते रहें।
भारत सरकार ने सभी निवेशक वर्ग के लिए 'एंजल टैक्स' समाप्त करने का निर्णय लिया है, जिससे स्टार्टअप्स और उनके निवेशकों को राहत मिलेगी। यह टैक्स 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए लाया गया था, लेकिन इसे अत्याचारी माना गया था। स्टार्टअप्स के लिए यह खबर एक बड़ी राहत के रूप में आई है।