केरल में हर पाँच साल बाद विधानसभा के लिए मतदान होता है और इस बार भी सियासी माहौल गरम है। लोग अब सिर्फ सरकार बदलने नहीं, बल्कि आगे के विकास के लिए सही दिशा चुनना चाहते हैं। तो चलिए, इस लेख में जानते हैं कि इस चुनाव में कौन‑कौन से मुद्दे dominate करेंगे, कौन‑से दल किन‑किन क्षेत्रों में प्रबल हैं और परिणाम कितनी देर तक तय हो सकता है।
केरल की सियासत में हमेशा दो बड़े गठजोड़ खेलते आए हैं – एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) और यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट). इस बार राष्ट्रीय स्तर की एनडीए भी कोलाहल मचा रही है, लेकिन उनका प्रभाव अभी तक स्पष्ट नहीं है।
एलडीएफ, जो मुख्य रूप से कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई‑एम) पर आधारित है, आज भी सामाजिक न्याय, भूमि सुधार और सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रमुख प्राथमिकता दे रहा है। उनका दावा है कि उन्होंने पिछले पाँच साल में स्वास्थ्य सुविधाओं को ग्रामीण इलाकों तक पहुँचाया और शिक्षा में सुधार किया।
यूडीएफ, जिसमें कांग्रेस और कई छोटे दल शामिल हैं, विकास को तेज़ करने, बेरोज़गारी को कम करने और पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दे रहा है। उनका कहना है कि अब गरीब‑भुगतान‑भिल्ड होते हुए भी आर्थिक वृद्धी को रफ़्तार देना ज़रूरी है।
1. रोज़गार और युवाओं की भागीदारी – केरल में नौकरी की कमी हमेशा एक बड़ा सवाल रहा है। अब कई युवा विदेश में नौकरी ढूँढ़ रहे हैं। पार्टियां अपना वादा कर रही हैं कि फ्रीलांस, स्टार्ट‑अप इकोसिस्टम और स्थानीय उद्योग पर फोकस बढ़ाएंगे।
2. पर्यावरण और समुद्री संरक्षण – कोस्टल एरिया में समुद्री प्रदूषण, मछली पकड़ने वाले समुदायों का दमन और जलवायु परिवर्तन के असर ने चुनावी एजेंडा में जगह बना ली है। कुछ दल नवीकरणीय ऊर्जा और समुद्री संरक्षण को नीति के केंद्र में रख रहे हैं।
3. स्वास्थ्य और महामारी की तैयारी – COVID‑19 के बाद से स्वास्थ्य इंफ़्रास्ट्रक्चर का महत्व बढ़ा है। लोग अब बेहतर अस्पताल, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड और सस्ती दवाओं की मांग कर रहे हैं। एलडीएफ इस दिशा में अपने ट्रैक रिकॉर्ड को प्रमुख बनाकर दिखा रहा है।
4. शिक्षा और डिजिटल एक्सेस – केरल में साक्षरता दर ऊँची है, पर नई तकनीक तक पहुंच अभी भी असमान है। यूडीएफ ऑनलाइन शिक्षा, ग्रामीण broadband और स्किल‑ड्राइवेन ट्रेनिंग को प्राथमिकता दे रहा है।
5. सामुदायिक सद्भावना और शरमिंदगी – धर्मनिरपेक्षता के साथ सामाजिक एकता के मुद्दे हमेशा महत्व रखते हैं। चुनाव में जातिगत या धार्मिक मुद्दे उठने की संभावना कम है, लेकिन दलों को यह बताना ज़रूरी है कि वे सभी नागरिकों को बराबर अधिकार देंगे।
इन मुद्दों को देखते हुए, मतदाता अब नयी पीढ़ी की आशा और पुरानी रणनीतियों के बीच चयन करेंगे।
अंत में, केरल चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं। यह केरल के भविष्य को तय करने वाला मंच है जहाँ हर वोट का वजन है। यदि आप केरल में हैं या इस राज्य की सियासत में रुचि रखते हैं, तो चुनावी अभियान, बहस और स्थानीय मीटिंग को फॉलो करें – इससे आपको सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी। याद रखें, आपका वोट ही बदलाव की पहली सीडी है।
मलयालम फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता और भाजपा नेता सुरेश गोपी त्रिशूर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव परिणामों में बढ़त बनाए हुए हैं। कांग्रेस के मुरलीधरन और सीपीआई के सुनील कुमार के साथ मुकाबला चल रहा है। 65 वर्षीय गोपी दूसरी बार लोकसभा सीट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।