सहारा अफ्रीका के उत्तरी हिस्से में फैला सबसे बड़ा गर्म‑रेत वाला रेगिस्तान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 9.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर है, यानी भारत से दो‑तीन गुना बड़ा। अगर आप मानचित्र पर देखते हैं, तो हमेशा देखेंगे कि सहारा उत्तर अफ्रीका के कई देशों – जैसे अल्जीरिया, लिबिया, मिस्र, मोरक्को, सूडान – को छूता है।
भौगोलिक रूप से सहारा में ऊँचे रेत के टीले, चट्टानी मैदान और कभी‑कभी जलाशय (ओएसिस) मिलते हैं। इन ओएसिस में नदियों का फांटा या जमीन के नीचे जलभंडार होते हैं, जो स्थानीय लोगों और पशुओं के लिए जीवन रेखा होते हैं।
सहारा में दिन में तापमान 45°C से ऊपर बढ़ सकता है, जबकि रात में बर्फीली ठंड पड़ती है, खासकर नवंबर‑दिसंबर में। बारिश बहुत कम होती है – कुछ जगहों पर साल में 25 mm से भी कम। इसलिए यहाँ की मिट्टी अक्सर सूखी और दरारों से भरी होती है। ये सूखी हवा कभी‑कभी रेत के तूफ़ान ले आती है, जिन्हें ‘हैबाब’ कहा जाता है।
हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने सहारा के विस्तार को तेज़ कर दिया है। कुछ क्षेत्रों में जंगल कटे, जिससे रेत आगे बढ़ी और पड़ोसी क्षेत्रों में खेती के लिए जगह कम हुई। यह मुद्दा अफ्रीकी देशों के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है।
सहारा में जीवजंतु कम होते हैं, लेकिन वे बहुत अनुकूलित होते हैं। फीनिक्स‑फ़्लेमिंग (इग्लू), फेन्क, और विभिन्न प्रकार के सरिस के फुर्सत में देखे जा सकते हैं। रात में धौनी (गिलहरी‑जैसी) और छोटे चूहों की आवाज़ सुनाई देती है।
इंसानों में सबसे बड़े समूह टुहारग और बर्बर लोग हैं, जो यहाँ के कठोर माहौल में रहते हैं। उनके पास पानी बचाने, रेत से बचने और रास्ते खोजने के कई नुस्खे हैं। वे अक्सर ऊँचे कगड़ी वाले टेंट (टेइ), ऊँट की सवारी और रेत के पथ पर नज़र रखकर यात्रा करते हैं।
पर्यटन भी बढ़ रहा है। साहसिक यात्रा करने वाले टूरिस्ट यहाँ के टीले, ओएसिस और दोपहर की रेत के सूर्यास्त का अनुभव करना चाहते हैं। यदि आप सहारा की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखें:
सहारा मरुस्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रकृति ने सबसे कठोर परिस्थितियों में भी जीवन को ढाल दिया है। चाहे आप भू‑विज्ञान में रुचि रखते हों, साहसिक यात्रा चाहते हों, या सिर्फ़ रेगिस्तान की तस्वीरों से मोहित हों – सहारा में हर कोई कुछ न कुछ नया सीख सकता है।
सितंबर 2024 के असामान्य और तेज बारिश ने सहारा मरुस्थल के कुछ हिस्सों को जलमग्न कर दिया, जिससे वहां हरियाली के साथ-साथ नीले पानी के पोखर बन गए। यह बारिश मरुस्थल के जलवायु पैटर्न को प्रभावशाली ढंग से बदल सकती है। हालांकि, बाढ़ से 20 से अधिक लोगों की मौत हुई और फसल को नुकसान पहुंचा।