भारत में जब आतंकवाद या सामूहिक हिंसा की बात आती है, तो अक्सर UAPA शब्द सुना जाता है। यह "Unlawful Activities (Prevention) Act" का संक्षिप्त रूप है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे से बचाना है। लेकिन आम लोग अक्सर इसे जटिल समझते हैं। इस लेख में हम UAPA के मुख्य बिंदु, इसके प्रयोग और आप पर पड़े संभावित असर को सरल भाषा में बताएँगे।
UAPA में तीन मुख्य हिस्से होते हैं – (1) आतंकवादी संगठनों की सूची बनाना, (2) ऐसी संगठनों से जुड़ाव का दंड, और (3) विशेष अपराधों के लिए तेज़ी से ट्रायल प्रक्रिया। इस एक्ट के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी प्रतिबंधित समूह से जुड़ता है, तो उसे दो साल की सजा या अधिकतम 10 साल की जेल मिल सकती है, साथ ही जुर्माने की भी सम्भावना रहती है।
एक और महत्वपूर्ण बात है ‘रिलीज़ ऑर्डर’—अक्सर केस में शामिल लोग कई महीनों तक जेल में रहते हैं, क्योंकि अदालत को निर्णय लेने में समय लग सकता है। यह कारण है कि कई बार UAPA को ‘सख़्त’ कहा जाता है।
पिछले कुछ महीनों में कई बड़े मामले UAPA के तहत दर्ज किए गए हैं। कुछ प्रमुख घटनाओं में छात्रों के आंदोलन, धार्मिक समूहों के विरोध, और राजनैतिक विरोधी संगठनों का केस शामिल है। इन मामलों में अक्सर यह देखा जाता है कि आरोपियों को तुरंत न्याय मिलना कठिन होता है, क्योंकि साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में समय लगता है।
उदाहरण के तौर पर, 2023 में कुछ छात्रों को ‘उत्पीड़न’ के आरोप में UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था, जबकि कई बार कोर्ट ने बाद में यह फैसला किया कि आरोपों को गंभीर नहीं माना जा सकता। ऐसे केस दर्शाते हैं कि UAPA का दुरुपयोग भी हो सकता है, इसलिए इस एक्ट की सीमा और प्रयोग को समझना बहुत ज़रूरी है।
अगर आप या आपका कोई परिचित UAPA के तहत गिरफ्तार हो जाता है, तो तुरंत वकील से संपर्क करें। वकील आपको यह बताने में मदद करेगा कि कौन‑से दस्तावेज़ पेश करने हैं और कैसे बंधक को रिहा करवाया जा सकता है। याद रखें, इस एक्ट में ‘बिना वारंट के खोज‑बिन’ की अनुमति नहीं है, इसलिए पुलिस को उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
साथ ही, आप अपने अधिकारों को लिखित में मांग सकते हैं – जैसे कि ‘हर्ज़ी रिपोर्ट’ या ‘डिटेनर’ का मूल रूप। अगर किसी भी समय आपको लगता है कि आपका अधिकार उल्लंघन हुआ है, तो उच्च अदालत या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।
वर्तमान में कई कानूनी विशेषज्ञ और मानवाधिकार संगठनों ने UAPA में सुधार की माँग की है। उनका कहना है कि सज़ा की सीमा कम की जानी चाहिए, ‘रिलीज़ ऑर्डर’ को तेज़ किया जाए, और आरोपियों को जल्दी से जल्दी अदालत में पेश किया जाए। अगर ये बदलाव लागू हों, तो UAPA अधिक संतुलित और न्यायसंगत बन सकता है।
अंत में, UAPA सिर्फ एक क़ानून नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है। जब तक आप इस एक्ट के प्रावधान और आपके अधिकारों को समझते रहेंगे, तब तक आप किसी भी संभावित समस्या से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं।
जी.एन. साईबाबा, एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, का निधन आठ साल की कैद के बाद हुआ, जिसमें उन्हें बुनियादी तौर पर गलत आरोपों पर कैद किया गया था। उनकी गिरफ्तारी 2014 में हुई थी, और 2024 में बंबई हाईकोर्ट द्वारा बरी होने के बावजूद, उनकी सेहत पर हुए गहरे प्रभाव ने उनके जीवन का अंत कर दिया। साईबाबा का मामला UAPA के दुरुपयोग और विकलांग कैदियों के अमानवीय व्यवहार को उजागर करता है।