23 साल की उम्र में किसी बड़े टेक दिग्गज से दूसरी कंपनी में जाना साधारण बात नहीं—खासकर तब, जब पैकेज करीब ₹3.36 करोड़ हो और रोल रिसर्च-ड्रिवन हो। भारतीय-अमेरिकी मशीन लर्निंग इंजीनियर मनोज (Manoj Tumu) ने Amazon छोड़कर Meta के विज्ञापन रिसर्च ग्रुप में Meta AI जॉब ली और अपने रास्ते का साफ फॉर्मूला भी साझा किया: इंटर्नशिप को प्राथमिकता, रिज़्यूमे में काम का असर, और इंटरव्यू की धारदार तैयारी।
मनोज की पढ़ाई की रफ्तार असामान्य रही। उन्होंने हाई स्कूल के दौरान लिए गए कॉलेज क्रेडिट्स का इस्तेमाल करके अपना अंडरग्रेजुएट कार्यक्रम एक साल में निपटा लिया। इसके बाद उन्होंने फुल-टाइम इंजीनियर की नौकरी के साथ-साथ AI में मास्टर्स किया। यानी कक्षा और कोड दोनों साथ—दिन में नौकरी, रात में रिसर्च/कोर्सवर्क।
मास्टर्स के बाद वे Amazon में मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर इंजीनियर बने। नौ महीने बाद उन्होंने Meta में शिफ्ट किया। वजह? उन्हें Meta की मशीन लर्निंग में तेजी से हो रहे काम—खासकर विज्ञापन और रैंकिंग में—ज्यादा रोमांचक लगा। दिलचस्प बात यह कि उन्होंने रेफरल का इंतज़ार नहीं किया; कंपनी की वेबसाइट और LinkedIn के जरिए डायरेक्ट एप्लाई किया और इंटरव्यू पार कर लिया।
Meta में उनकी भूमिका रिसर्च और इम्प्लिमेंटेशन का संतुलन है। मतलब—पेपर पढ़ना, प्रोटोटाइप बनाना, प्रोडक्शन पाइपलाइन में मॉडल डालना और बिज़नेस मेट्रिक्स (जैसे क्लिक-थ्रू रेट, कन्वर्ज़न, विज्ञापन की गुणवत्ता और यूज़र अनुभव) पर असर मापना। यह रोल कोड-सेंट्रिक होने के साथ डेटा-सेंसिटिव भी है—जहां हर छोटे बदलावे का A/B टेस्टिंग से कठोर प्रमाण चाहिए।
पैकेज पर आती है बात। लगभग $400,000 (करीब ₹3.36 करोड़) जैसे ऑफर सामान्यतः बेस सैलरी, परफॉर्मेंस बोनस और स्टॉक यूनिट्स के मिश्रण से बनते हैं। यह नंबर अनुभव, लेवल और लोकेशन के हिसाब से बदलता है, लेकिन इतना तय है कि हाई-इम्पैक्ट ML रोल में बाज़ार का प्रीमियम अभी भी ऊंचा है—खासकर वहां जहां मॉडल सीधे राजस्व और यूज़र एंगेजमेंट को प्रभावित करते हैं।
यह जर्नी इस मिथ को भी तोड़ती है कि “बिना रेफरल कुछ नहीं होता।” रेफरल मदद करता है, पर निर्णायक चीज़ है—तैयारी, ठोस अनुभव और कंपनी की अपेक्षाओं के मुताबिक अपने आपको पेश करने की कला।
मनोज का पहला बड़ा सबक—रिज़्यूमे में पर्सनल प्रोजेक्ट्स नहीं, प्रोफेशनल काम का असर दिखाइए। उन्होंने साफ कहा, 2–3 साल के बाद प्रोजेक्ट सेक्शन हटाना ठीक है, क्योंकि रिक्रूटर असल काम के इम्पैक्ट देखना चाहते हैं। कॉलेज में हों तो इंटर्नशिप—भले स्टाइपेंड कम हो—करिए। वही पहली सीढ़ी है जो आपको इंडस्ट्री-ग्रेड कोड, टीम वर्क और डेडलाइंस सिखाती है।
रिज़्यूमे कैसे दिखे? एक पेज, पढ़ने में आसान, मापने योग्य असर के साथ। “डेवलप्ड मॉडल” की जगह “CTR 3.2% बढ़ा, इन्फ्रेंस लेटेंसी 18% घटी” जैसे ठोस नंबर। टूल्स/टेक स्टैक एक सिंगल लाइन में, जगह बचाइए। और हाँ, हर कंपनी के लिए वही कॉपी-पेस्ट नहीं—JD (जॉब डिस्क्रिप्शन) में कीवर्ड्स देख कर दो-तीन लाइनें कस्टमाइज़ करिए।
इंटर्नशिप का तंत्र भी समझिए। शुरुआती सेमेस्टर में ही करियर सर्विसेज, प्रोफेसर की लैब, स्टार्टअप जॉब बोर्ड, और छोटे कॉन्ट्रैक्ट गिग्स पर नज़र रखें। रिसर्च असिस्टेंट रोल—even पार्ट-टाइम—एक बड़ा फर्क ला सकता है: Git में असली योगदान, डेटा पाइपलाइन, और एक्सपेरिमेंट लॉगिंग की आदत।
इंटरव्यू की तैयारी पर मनोज ने जोर दिया—और यह वही जगह है जहां सबसे ज्यादा उम्मीदवार ढीले पड़ते हैं। उन्होंने छह हफ्ते तक लगातार तैयारी की। आमतौर पर 4–6 राउंड: कोडिंग, मशीन लर्निंग, सिस्टम/डिज़ाइन और बिहेवियरल। यहां फॉर्मूला काम आता है—कंपनी के वैल्यूज़ का गहरा अध्ययन और अपने अनुभवों की कहानियां STAR (Situation, Task, Action, Result) ढांचे में लिखना।
एक व्यावहारिक तरीका यह है कि आप 12–15 STAR स्टोरीज़ लिखें। जैसे—“डेटा पाइपलाइन में स्केलिंग की दिक्कत थी (Situation), 48 घंटे में 30% अधिक ट्रैफ़िक संभालना था (Task), हमने फीचर्स डिकपल करके कैशिंग जोड़ी (Action), लेटेंसी 22% घटी और एरर-रेट आधा हुआ (Result)।” यही कहानियां बिहेवियरल राउंड में आपका आत्मविश्वास बनाती हैं।
कोडिंग राउंड की बात करें तो रोज़ के 1–2 सवाल, सप्ताहांत में सिस्टम डिज़ाइन और ML डिज़ाइन पर फोकस। ML में क्लासिकल से लेकर डीप तक—लॉजिस्टिक/लीनियर रिग्रेशन से ट्रांसफॉर्मर आधारित मॉडल तक—सब का व्यावहारिक इस्तेमाल समझें: कब किसे चुनना है, कौन सा मेट्रिक, और डेटा स्क्यू/लीकेज से कैसे निपटना है।
मनोज के करियर फ़ैसले भी सीख देने वाले हैं। इंटर्नशिप मिस हुई, तो उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद एक कॉन्ट्रैक्ट रोल पकड़ा—फिर भी दिशा नहीं छोड़ी। उनके सामने पारंपरिक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर ज्यादा वेतन लेने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने कम पैसे वाले मशीन लर्निंग रोल का चुनाव किया क्योंकि वही उनका लक्षित ट्रैक था। नतीजा—कुछ समय बाद एक्सपीरियंस और इम्पैक्ट के दम पर हाई-कम्पनसेशन अवसर खुले और वे Meta तक पहुंचे।
यहां एक और व्यावहारिक बिंदु: शॉर्ट-टर्म सैलरी बनाम लॉन्ग-टर्म स्किल। शुरुआती 12–24 महीनों में जो स्किल आप बनाते हैं—डेटा समझना, मॉडल शिप करना, बिज़नेस मेट्रिक्स सुधारना—वही आगे चलकर आपको बड़े प्रोजेक्ट, बेहतर लेवल और स्टॉक-हैवी पैकेज तक ले जाती है।
इंडस्ट्री का परिदृश्य भी बदला है। कुछ साल पहले तक क्लासिकल ML टूलकिट—रिग्रेशन, ट्री-बेस्ड मॉडल—मुख्य थे। अब डीप लर्निंग और ट्रांसफॉर्मर आर्किटेक्चर ने मुख्यधारा पकड़ ली है। बड़े भाषा मॉडल और जेनरेटिव AI (जैसे ChatGPT) ने मानक ऊंचा कर दिया है। इसके साथ रोल भी विविध हुए—मशीन लर्निंग इंजीनियर (प्रोडक्शन-फ़र्स्ट), एप्लाइड साइंटिस्ट (रिसर्च+प्रोडक्ट), और रिसर्च साइंटिस्ट (पेपर-ड्रिवन, लम्बा हॉराइज़न)।
विज्ञापन रिसर्च जैसे क्षेत्रों में क्या होता है? यूज़र को सही विज्ञापन दिखाने के लिए रैंकिंग, बिडिंग और क्वालिटी स्कोरिंग के मॉडल बनते हैं। चुनौती सिर्फ सटीकता नहीं, स्केल और लेटेंसी भी है। अरबों रिक्वेस्ट दिन में, मिलीसेकंड में निर्णय, और साथ में प्राइवेसी, फेयरनेस और रेगुलेशन का पालन। यहां हर बदलाव चरणबद्ध होता है—ऑफलाइन वेलिडेशन, शैडो ट्रैफ़िक, और फिर नियंत्रित A/B टेस्ट।
अब बात करें कि आप इस ट्रैक पर कैसे आगे बढ़ सकते हैं। नीचे एक कामचलाऊ, लेकिन प्रभावी रोडमैप है—स्टूडेंट्स और शुरुआती प्रोफेशनल्स दोनों के लिए।
रिज़्यूमे/पोर्टफोलियो टिप्स:
इंटरव्यू प्रेप—6 हफ्तों की एक सरल योजना:
एप्लिकेशन स्ट्रैटेजी पर मनोज का तरीका सरल था—डायरेक्ट एप्लाई करें, और हर जॉब के लिए कवर मैसेज/रिज़्यूमे कस्टमाइज़ करें। रेफरल मिल जाए तो बढ़िया, नहीं तो उसे बाधा मत बनने दीजिए। अपने अप्लाई ट्रैकर में रोल, तारीख, फॉलो-अप नोट्स और इंटरव्यू स्टेटस लिखते चलें।
कम्पनसेशन नेगोशिएशन भी एक स्किल है। ऑफर मिलने पर—बेस, बोनस, RSU, रिफ्रेश—सब पूछें। मार्केट बेंचमार्क का अंदाज़ा लगाएं और डेटा-आधारित काउंटर रखें। शालीन और प्रोफेशनल रहें; कई बार 48–72 घंटे का वक्त लेकर आप बेहतर सोच-समझ कर जवाब दे पाते हैं।
AI/Ads जैसे डोमेन में एथिक्स और प्राइवेसी अनिवार्य हैं। डेटा मिनिमाइज़ेशन, यूज़र कंसेंट, और बायस मिटिगेशन पर आपकी समझ जितनी मजबूत होगी, उतना ही विश्वास मिलता है। टीमों को आज ऐसे लोग चाहिए जो न सिर्फ मॉडल बना सकें, बल्कि जिम्मेदार तरीके से उन्हें चलाना भी जानते हों।
कैरियर के मोड़ पर मनोज का एक और इशारा—लंबी दूरी के लिए सोचिए। उन्होंने कम वेतन वाले ML रोल को इसलिए चुना क्योंकि वही उनकी मंज़िल थी। कुछ महीने बाद वही फैसले उन्हें बड़े मौके तक ले गए। यह कहानी बताती है: सही दिशा में जमा हुआ अनुभव, जानबूझकर की गई तैयारी, और कंपनी के वैल्यूज़ के साथ आपका मेल—ये तीन बातें मिलकर दरवाज़े खोलती हैं, कभी-कभी उम्मीद से भी तेज़।
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