असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की जासूसी का आरोप लगाकर झारखंड की राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि झारखंड पुलिस ने छह महीने तक चंपई सोरेन की निगरानी की, जिसका आदेश राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिया था।
यह आरोप तब लगाया गया जब चंपई सोरेन रांची में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए। इसे भाजपा की आगामी चुनावों से पहले झारखंड में अनुसूचित जनजाति समुदाय को आकर्षित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि चंपई सोरेन के सहयोगियों ने दिल्ली के एक होटल में झारखंड पुलिस की विशेष शाखा के दो सब-इंस्पेक्टर्स को पकड़ा। ये दोनों अधिकारी चंपई सोरेन की निगरानी कर रहे थे। उन्हें दिल्ली पुलिस के हवाले कर दिया गया है और मामले की जांच जारी है।
सरमा ने यह भी संकेत दिया कि चंपई सोरेन के फोन को टैप किया जा सकता था और उन्हें लक्षित करने के लिए 'हनी ट्रैप' की योजना बनाई जा सकती थी क्योंकि एक महिला को उन दो सब-इंस्पेक्टर्स से मिलते हुए देखा गया था। ये आरोप झारखंड की राजनीति में भूचाल ला सकते हैं।
चंपई सोरेन, जिन्होंने चार महीने तक झारखंड के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला था, ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा। उन्होंने भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी पहचान और अस्तित्व खतरें में हैं, जो कि बांग्लादेश से 'बड़े पैमाने पर' घुसपैठ का परिणाम है।
हिमंत बिस्वा सरमा ने हेमंत सोरेन को चेतावनी दी है कि दो महीने बाद 'उचित जवाब' दिया जाएगा, जिससे संभावित राजनीतिक परिणामों का संकेत मिलता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये आरोप और चेतावनी झारखंड की राजनीति को किस दिशा में ले जाते हैं।
इस जासूसी के मामले ने झारखंड की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। क्या यह हेमंत सोरेन द्वारा राजनीतिक साजिश है या फिर चंपई सोरेन की योजनाबद्ध चाल? यह देखने वाली बात होगी।
कुल मिलाकर इस मुद्दे ने न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश में राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इसे आगामी चुनावों से पहले भाजपा के लिए एक बड़ा वरदान माना जा रहा है।
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