नवरात्रि के दोवें दिन को Maa Brahmacharini को समर्पित किया जाता है। यह स्वरूप देवी पार्वती का वह रूप है जहाँ वह अभी ब्रह्मचर्य में थी, यानी पूर्णतया शुद्ध और आत्म-अनुशासन में लीन। इस अवस्था में वह योगी बन गईं, हाथ में रुद्राक्ष माला और कमंडल रखती हुई, पैरों को बिन जूते के चलती हुई दर्शायी जाती हैं। यह दिखाता है कि सच्ची शक्ति बाहरी भौतिक चीज़ों में नहीं, बल्कि आत्म‑साख़ में निहित है।
भौगोलिक रूप से देखें तो माँ ब्रह्मचरिणी को मंगल (मंगल ग्रह) का नियंत्रण भी दिया गया है, जिससे उनके अनुयायियों को एकता, खुशहाली और भय‑मुक्त जीवन की आशा मिलती है। इस दिन की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति, मन की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की कामना की जाती है।
पूरी तैयारी सुबह जल्दी शुरू होती है। स्नान करके साफ‑सुथरे सफ़ेद या लाल कपड़े पहनें, क्योंकि ये रंग शुद्धता और ऊर्जा का प्रतीक हैं। पूजा स्थल को साफ़ कपड़े से ढँकें और सभी आवश्यक सामग्री एक जगह रखें।
नीचे दी गई सूची में आप चरण‑दर‑चरण क्या‑क्या चाहिए, यह देख सकते हैं:
कलश स्थापना में एक पवित्र कलश को गंगा जल से भरें, उसमें पत्ते, सुपारी, कुछ सिक्के और अंकुश (अक्षत) डालें। कलश के बाहर लाल कुंकुम से स्वस्तिक बनाएँ, फिर पाँच आम के पत्ते कलश के गर्दन के चारों ओर रखें। ऊपर से नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर, लाल धागे से बांधें।
पूजा के मुख्य चरण नीचे क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत हैं:
पूजा के दौरान "ओम् देवी ब्रह्मचरिण्यै नमः" मंत्र को १०८ बार जपें। कई लोग इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं, जिससे आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है।
अंत में आरती में कपूर जलाकर, भक्तियों के गीत गाएँ और प्रसाद (मिठाई या फल) को सभी परिवारजन में बाँटें। यह प्रसाद शुभकामनाओं का प्रतीक है।
एक विशेष रिवाज है कि तीन परत मिट्टी से बना किचन पैन ले लें, उसमें सात या नौ अनाज (जैसे जौ, मक्का, चना) रखें और जल से हल्का नम रखें। इसके केंद्र में कलश रखें और पूरे नवरात्रि के लिए अखंड ज्योति जलाते रहें। यह समृद्धि, विकास और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
माँ ब्रह्मचरिणी की इस पूजा से प्राप्त होने वाले फायदे बहुत हैं – मन की शांति, भय का नाश, आत्म‑विश्वास में वृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति। विशेषकर वे लोग जो जीवन में संयम, अध्यात्म और शुद्धि चाहते हैं, उनके लिये यह पूजा अत्यधिक लाभकारी है।
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