तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आ गया है। वी के ससीकला नटराजन ने मदुरै में एक भाषण में कहा कि के ए सेंगोट्टैयन का AIADMK में एकता का प्रयास दल के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को दर्शाता है। उन्होंने सीधे तौर पर कहा — एकता ही 2026 के विधानसभा चुनाव में DMK को हराने की कुंजी है। यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक बातचीत नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत का संकेत है, जहाँ एक बार बंद हो चुकी राजनीतिक शक्तियाँ फिर से जाग रही हैं।
एकता का नया दौर: कौन क्यों आ रहा है?
ससीकला ने 2017 में AIADMK से निकाले जाने के बाद लगभग आठ साल तक राजनीति से दूर रही। लेकिन अब वह वापसी की तैयारी में हैं। उनके लिए यह सिर्फ वापसी नहीं, बल्कि अम्मा के युग की वापसी का दावा है। उन्होंने एडप्पाडी पालनीस्वामी के नेतृत्व को कमजोर बताया है और कहा है कि उनके नेतृत्व में दल के वफादार कार्यकर्ता भाग गए। यह बात सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) की भी है, जिन्होंने बोधिनायकनूर में वी ओ चिदम्बरनार की स्मृति में फूल चढ़ाते हुए कहा — "मैं भी एकता के लिए लड़ रहा था। मैं चाहता हूँ कि सेंगोट्टैयन का प्रयास सफल हो।"
इसी बीच, नैनार नागेंद्रन, भाजपा के तमिलनाडु अध्यक्ष, ने भी इस प्रयास को "अच्छा" बताया, लेकिन सावधानी से कहा — "मैं AIADMK के मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकता।" उन्होंने एक गहरा राजनीतिक संकेत दिया: "अगर सभी विपक्षी बल एकजुट हो जाएँ, तो DMK की सरकार को गिराया जा सकता है।"
क्या यह सच में एकता है, या फिर एक रणनीति?
लेकिन यहाँ एक बड़ा सवाल उठता है — यह एकता क्या है? या फिर यह किसी और की रणनीति का हिस्सा है? वीसीके के अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने सीधे सवाल उठाया — "हम नहीं जानते कि सेंगोट्टैयन के पीछे कौन है। अगर भाजपा पीछे है, तो AIADMK के भविष्य के लिए यह अच्छा नहीं होगा।" उनकी चिंता समझ में आती है। AIADMK का इतिहास दिखाता है कि भाजपा का जुड़ना अक्सर दल के स्वतंत्र राजनीतिक पहचान को कमजोर करता है।
ससीकला का इतिहास भी उतना ही जटिल है। 2016 में जयललिथा की मृत्यु के बाद वह दल की अगुआई के लिए तैयार थीं। लेकिन उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में चार साल की सजा हुई। उनके खिलाफ चली जांच ने उनके गुट के लोगों को भी दल से बाहर कर दिया। अब वह कहती हैं — "मैं अम्मा के गौरवशाली दिन वापस लाऊंगी।" लेकिन क्या लोग उन पर भरोसा करेंगे? उन्होंने तो खुद दल को तीन बार विभाजित कर दिया — एक बार जयललिथा के बाद, एक बार ओपीएस के साथ, और अब एडप्पाडी के खिलाफ।
2026 के चुनाव: क्या होगा अगर AIADMK एकजुट हो जाए?
अगर ससीकला, ओपीएस और सेंगोट्टैयन एक साथ आ जाएँ — तो AIADMK के पास एक ऐसा नेतृत्व होगा जिसकी जड़ें राज्य के हर कोने में हैं। ओपीएस के पास तमिलनाडु के उत्तरी जिलों में मजबूत समर्थन है। सेंगोट्टैयन के पास दक्षिणी तमिलनाडु के गाँवों में अपना आधार है। और ससीकला के पास वो लोग हैं जो जयललिथा के नाम से अभी भी जुड़े हुए हैं। अगर ये तीनों एक साथ आ जाएँ, तो DMK के लिए 2026 का चुनाव एक जंग बन जाएगा।
लेकिन यही बात एक बड़ी चुनौती भी है। इन तीनों के बीच कभी भी विश्वास नहीं रहा। ओपीएस और ससीकला ने एक-दूसरे के खिलाफ बार-बार चुनाव लड़े हैं। अब यह सवाल उठता है — क्या यह सिर्फ एक चुनावी गठबंधन है, या फिर एक असली एकीकरण? दरअसल, जब तक इन लोगों के बीच एक नियमित और पारदर्शी संरचना नहीं बन जाती, तब तक यह एकता का नाम लेकर एक अस्थायी गठबंधन बनी रहेगी।
इतिहास का दबाव: जयललिथा के बाद क्या हुआ?
2016 में जयललिथा की मृत्यु के बाद AIADMK एक अंधेरे युग में चला गया। जब जयललिथा जीवित थीं, तो उनका नेतृत्व दल को एक सूत्र में बाँधे रखता था। उनके बाद दल तीन बार टूटा — पहले ससीकला के खिलाफ, फिर ओपीएस के खिलाफ, और अब एडप्पाडी के खिलाफ। हर बार टूटने से दल का वोट बैंक कम हुआ। 2021 के चुनाव में AIADMK ने केवल 66 सीटें जीतीं, जबकि 2011 में यह संख्या 150 थी। अब यह चुनौती है — क्या इन तीनों नेताओं को अपने अहंकार को छोड़कर दल की एकता के लिए काम करना होगा?
यहाँ एक और बात ध्यान देने लायक है — DMK ने अब तक अपनी नीतियों के जरिए राज्य के गरीब और मध्यम वर्ग को स्थिर रखा है। अगर AIADMK एकजुट हो जाता है, तो वह इसी वर्ग को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगा। लेकिन उसके लिए उसे अपने अतीत के भ्रष्टाचार के दाग को भी धोना होगा।
अगला कदम: क्या होगा अगले छह महीने में?
अगले छह महीने तय कर देंगे कि यह एकता का नाम लेकर चल रहा यह प्रयास सच में एक नई राजनीतिक शक्ति बन पाएगा या फिर एक और बार टूट जाएगा। ससीकला अब तक केवल बयान दे रही हैं। उन्हें अब एक राजनीतिक संरचना बनानी होगी — एक नया नेतृत्व टीम, एक नया चुनावी नारा, और एक नया संगठनात्मक ढांचा। वरना यह सब केवल एक बड़ा शो होगा।
दरअसल, राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। पिछले महीने तक जो दुश्मन था, आज दोस्त बन गया। और आज जो दोस्त है, कल दुश्मन बन सकता है। लेकिन जब लोग एक ऐसे नेता को याद करते हैं जिसने उन्हें भोजन, बिजली और आत्मसम्मान दिया — तो वह याद बहुत ज्यादा ताकतवर होती है। और शायद यही ससीकला का सच्चा आधार है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
ससीकला की वापसी AIADMK के लिए क्यों खतरनाक हो सकती है?
ससीकला की वापसी AIADMK के लिए खतरनाक इसलिए हो सकती है क्योंकि उनके नेतृत्व के दौरान दल का एक बड़ा हिस्सा बाहर चला गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चल रहा था, और उनके गुट के लोगों को दल से निकाल दिया गया था। अगर वे वापस आती हैं, तो ओपीएस और एडप्पाडी के समर्थकों के बीच नई तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे दल और भी टूट सकता है।
2026 के चुनाव में DMK को हराने के लिए AIADMK को कितनी सीटें जीतनी होंगी?
2021 के चुनाव में DMK ने 159 सीटें जीतीं, जबकि AIADMK केवल 66 सीटें जीत पाई। अगर AIADMK अपने पिछले वोट बैंक का 70% हिस्सा वापस पाना चाहता है, तो उसे कम से कम 120 सीटें जीतनी होंगी। यह तभी संभव है जब वह ओपीएस, सेंगोट्टैयन और अन्य छोटे गुटों के साथ एकजुट हो जाए।
भाजपा का AIADMK में हस्तक्षेप क्यों खतरनाक है?
भाजपा का AIADMK में हस्तक्षेप खतरनाक है क्योंकि AIADMK की पहचान दक्षिणी राज्य के स्वतंत्र राजनीतिक संस्कृति पर आधारित है। भाजपा की उत्तरी भारतीय राष्ट्रवादी नीतियाँ तमिलनाडु के लोगों को असहज कर सकती हैं। वीसीके जैसे दलों का डर है कि भाजपा AIADMK को अपनी राजनीतिक रणनीति के लिए इस्तेमाल करेगी, जिससे दल की अपनी पहचान खो जाएगी।
ओपीएस और ससीकला के बीच एकता का क्या संभावित आधार है?
ओपीएस और ससीकला के बीच एकता का एकमात्र संभावित आधार है — एडप्पाडी पालनीस्वामी के खिलाफ संयुक्त विरोध। दोनों नेता अतीत में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। अगर वे एक साथ आते हैं, तो यह सिर्फ एक अस्थायी रणनीति होगी, जिसका लक्ष्य DMK को हराना है, न कि दल की लंबी अवधि की एकता।
सेंगोट्टैयन की भूमिका इस एकता प्रयास में क्या है?
सेंगोट्टैयन एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने AIADMK में लंबे समय तक सेवा की है और जिनका दक्षिणी तमिलनाडु में अभी भी बल्की समर्थन है। वे एक बहुत ही विश्वसनीय और निष्पक्ष चरित्र के रूप में जाने जाते हैं। उनका नेतृत्व एकता के प्रयास को वैधता दे सकता है, खासकर अगर वे ससीकला और ओपीएस के बीच समझौता कराने में मध्यस्थ का काम करते हैं।
2026 के चुनाव में अन्य दल कैसे प्रभावित हो सकते हैं?
अगर AIADMK एकजुट हो जाता है, तो वीसीके, मक्कल नेति मन्नारम और अन्य छोटे दलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी। ये दल अब या तो AIADMK के साथ गठबंधन में शामिल होंगे, या फिर DMK के साथ जुड़कर एक नया विपक्षी गठबंधन बनाएंगे। दोनों ही विकल्प अब बहुत जटिल हो गए हैं।
Arjun Kumar
ये सब एकता का नाम लेकर बस एक बड़ा नाटक है। जब तक एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, तब तक ये सब बातें बस टीवी ड्रामा हैं।