बिहार विधानसभा चुनाव 2025: खर्च पर ₹40 लाख की कड़ी सीमा, निगरानी भी कड़ी

कौवे का घोंसला बिहार विधानसभा चुनाव 2025: खर्च पर ₹40 लाख की कड़ी सीमा, निगरानी भी कड़ी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: खर्च पर ₹40 लाख की कड़ी सीमा, निगरानी भी कड़ी

26 सित॰ 2025

election commission की नई दिशा‑निर्देशों ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है। बिहार चुनाव 2025 में हर उम्मीदवार पर ₹40 लाख से अधिक खर्च नहीं करने की कड़ी शर्त रखी गई है, जिससे धन‑शक्ति का प्रभाव कम करने की कोशिश है। यह कदम सिर्फ एक संख्यात्मक सीमा नहीं, बल्कि एक पूरी निगरानी प्रणाली है जो हर खर्चीली चीज़ को ट्रैक करती है।

सीमा के पीछे की सोच और विस्तृत प्रावधान

पहले चुनावों में अक्सर बड़े‑पैमाने पर रैलियों, झंडे‑बाजियों और महंगे विज्ञापनों पर भारी खर्चा देखा जाता था। अब आयोग ने तय किया है कि सार्वजनिक मीटिंग, रैली, प्रचार सामग्री, यात्रा और मीडिया विज्ञापन सभी को इस ₹40 लाख की सीमा में समाहित किया जाएगा। सीमा पार करने वाले उम्मीदवारों के खिलाफ जांच शुरू हो जाएगी और संदेहास्पद मामलों में डिस्क्वालीफ़िकेशन की संभावना भी बनी रहेगी।

नकद लेन‑देन पर भी कड़ा ध्यान दिया गया है। बड़े नकदी भुगतान को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, और छोटे‑छोटे अंतर भी दण्डनीय माना जाएगा। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में ‘फ्लाइंग स्क्वाड’ और ‘एक्स्पेंडिचर ऑब्ज़र्वर्स’ तैनात किए गए हैं, जो अनलॉग्ड नकदी के उपयोग को तुरंत नोटिस कर सकते हैं।

निगरानी प्रणाली और सहयोगी एजेंसियां

निगरानी प्रणाली और सहयोगी एजेंसियां

एकीकृत चुनाव खर्च निगरानी प्रणाली (IEMS) अब बिहार में लागू हो गई है। इस डिजिटल पोर्टल के माध्यम से पार्टियों को अपनी वार्षिक ऑडिटेड अकाउंट, योगदान रिपोर्ट और खर्च का विस्तृत विवरण ऑनलाइन जमा करना अनिवार्य है। रियल‑टाइम डेटा का विश्लेषण करके आयोग तुरंत अनियमितताओं को पकड़ सकता है।

इस प्रयास में कई केंद्रीय एजेंसियों की भागीदारी है: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सीजीएसटी, डिरेक्टरेट ऑफ़ रेवन्यू इंटेलिजेंस, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया और विभिन्न सुरक्षा बल। राज्य स्तर पर पुलिस, राज्य एक्साइट, राज्य जीएसटी, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट आदि मिलकर इस ढांचे को सुदृढ़ करेंगे।

निगरानी के दायरे में शैडो ऑब्ज़र्वर रजिस्टर, सबूत फोल्डर, इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया ट्रैकिंग, सार्वजनिक मीटिंग एवं रैली की निगरानी, प्रचार सामग्री की प्रिंटिंग, चुनावी वाहन के उपयोग, शराब वितरण आदि शामिल हैं। साथ ही बैंक से नकद निकासी और पार्टी के खर्चों की जाँच भी की जाएगी।

व्यय निरीक्षक (expenditure observers) को विशेष रूप से नियुक्त किया गया है। ये निरीक्षक सामान्य और माइक्रो‑ऑब्ज़र्वर्स के साथ मिलकर काम करेंगे, ताकि खर्च की सटीक रिपोर्ट तैयार की जा सके। उन्हें विस्तृत ब्रीफ़िंग और कार्य निर्देश दिए गये हैं, जिससे फील्ड में कोई चूक न रहे।

इन नियमों के लागू होने से राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों को फिर से सोचने का मोका मिलेगा। बड़े‑पैमाने पर रैली‑भरी राजनीति अब कॉम्प्लायंस‑फ्रेंडली बननी पड़ेगी। प्रत्येक उम्मीदवार को सभी खर्चों की बुक‑कीपिंग करनी होगी, जिससे पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित हो सके।

यदि कोई उम्मीदवार या पार्टी इन नियमों का उल्लंघन करती है, तो उसे जांच, जुर्माना और संभवतः चुनाव से बाहर कर दिया जाएगा। आयोग ने इस बात पर बल दिया है कि कोई भी अपवाद नहीं दिया जाएगा; राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा को वित्तीय प्रतिबंधों के साथ संतुलित करना होगा।

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